Book Title: Bhagwati Sutra Part 16
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२६ उ.१० ०१ अचरमनारकादीना० पापकर्मबन्धः ६५९ ॥ अथैकादशोद्देशकः मारभ्यते ॥
दशमोदेशकं निरूप्य क्रमप्राप्तमेकादशो देशकमारभते, तस्येदं सूत्रम् ' अचरिमे णं भंते' इत्यादि ।
मूलम् - अचरिणं भंते ! नेरइए पावं कस्मं किं बंधी पुच्छा गोयमा ! अत्थेगइए एवं जहेव पढमोहेसए पढमबितिया भंगा भाणियव्वा सव्वत्थ जात्र पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं । अचरिमे णं भंते! मणुस्से पार्व कम्मं किं बंधी पुच्छा, गोयमा ! अत्थेrइए बंधी बंध बंधिस्स १, अत्थेगइए बंधी बंधन न बंधिस्सइ २, अत्थेगइए बंधी न बंधन बंधिस्सइइ । सलेस्ले भंते ! अचरिमे मस्से पायें कम्मं किं बंधी एवमेव तिन्नि भंगा चरमविहूणा भाणियव्वा, एवं जहेव पढमुद्देले, नवरं जेसु तत्थ वीससु चन्तारि भंगा तेसु इह आदिला तिन्नि अंगा भाणियव्वा चरिमभंगवजा । अलेस्ले केवलनाणी य अजोगीय, एए तिन्निविन पुच्छिज्जति, सेसं तहेव । वाणमंतरजोइसिय वेमाणिया जहा नेरइया | अचरिमे णं भंते! नेरइए नाणावर - णिज्जं कम्मं किं बंधी पुच्छा, गोयमा ! एवं जहेब पावं०, नवरं मणुस्तेसु सकसाइसु, लोभकसाइसु य पढमबितिया भंगा। सेसा अट्ठारस चरमविणा, सेसं तहेव जाव बेमाणियाणं । दरिसणावरणिजं पि एवं वेव निरवसेस | वेयणिजे सव्वत्थ वि पढम बितिया भंगा जाव बेमाणियाणं, नवरं मणुस्सेसु अलेस्ले केवली अजोगीय नत्थि । अवरिमेणं भंते! नेरइए मोहणिजं कम्मं किं बंधी पुच्छा, गोथमा ! जहेव पावं कम्मं तहेव निरवसेसं जाव वेमाणिए । अचरिमेणं भंते! नेरइए आउयं कम्मं

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