Book Title: Bhagwati Sutra Part 16
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 681
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२६ उ.१० सू०१ चरमनारकादीना० पापकर्मवन्ध. ६५७ परम्परोद्देशकश्च ततीयोदेशकवत् पठितः, तथापि तस्मिन् मनुष्यपदमाश्रित्य आयुष्यकर्मणो बन्धविषये वैलक्षण्यं वाच्यं तदिल्थम् वृत्तीयोदेशके आयुष्कर्मापेक्ष्य सामान्यतोऽधनात् बध्नाति भन्स्यति१, अवध्नात् बध्नाति न भन्नस्यति३ अवधनात न वनाति भन्स्यति३, अवध्नात् न वनातिन भन्स्यति ४ इत्याकार काश्चत्वारो भङ्गाः कथिताः परन्तु तत्र चरममनुष्यस्यायुष्कर्मवन्धमाश्रित्य चतुर्थ एव भङ्गा घटने यश्चरमो मनुष्यो भवेत्स अ युवनार न बध्नाति न भन्स्यतीति, अन्यथा तस्य चरमत्वमेव न स्यादिति। एवमन्यत्रापि वैलक्षमण्यमवगन्तव्यम् 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाब विहरइ' तदे भदन्त ! तदेव भदन्त ! इति यावद्विहरति हे भदन्त ! चरम रयिकादीनां पापकर्मादिवन्धविषये यत् कथितं कहना चाहिये । यहां यह चरम नारकोद्देशक, परम्परोद्देशक तृतीयो देशक की तरह कहने का बतलाया गया है फिर भी वहां मनुष्य पद को आश्रित करके सामान्य रूप से आयुष्य कम के मंत्र के सम्बन्ध में चार भंग प्रकट किये गये हैं। पर यहां चरम मनुष्य को आश्रित करके केवल एक चतुर्थ भंग ही घट सकता है क्योंकि चरम मनुष्य होगा वह 'अपनात, न बध्नाति न भन्स्थति' इसी एक भंगवाला होगा नहीं तो फिर उस में चरमतो ही नहीं आ सकेगी। इसी प्रकार से तृतीयोद्देशक से यहां चरमोद्देशक में और भी पदों में विलक्षणता जानलेनी चाहिये । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहर' हे भदन्त ! चरम नैरयिकादिकों के पापकर्म आदि के वध के विषय में जो आप देवानुपियने कहा है वह सघ सर्वथा सत्य ही हैं। इस प्रकार कहकर સમજવું. તે પણ ત્યાં મનુષ્ય પદને આશ્રય કરીને સામાન્યપણાથી આયુષ્ય કર્મના બંધના સંબંધમાં ચાર ભંગો પ્રગટ કર્યા છે. પરંતુ અહિયાં ચરમ - મગ ચશ્રય કરીને કેવળ એક ચે ભંગજ ઘટે છે. કેમ કે જે ચરમ मनुष्य होते अबध्नातू, न बध्नाति, न भन्स्यति' मा मे पाणी तयरी. નહિં તે ફરી તેમાં ચરમપણું જ આવી શકશે નહિ. એ જ પ્રમાણે પહેલા ઉદેશાથી અહિયા ચરદેશકમાં બીજા પદેમાં વિલક્ષણપણું સમજી લેવું. _ 'सेव भंते ! सेव भते । ति जाव विहरई' 3 मापन २२म नबिना પાપકર્મ વિગેરેના બંધના સંબંધમાં આપી દેવાનુપ્રિયે જે કથન કર્યું છે, તે સઘળું કથન સર્વથા સત્ય છે. હે ભગવન આપી દેવાનુપ્રિયનું કથન अ०३

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