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प्रमेयचन्द्रिका टीका ०२५ उ.७ सू०११ ध्यानस्वरूपनिरूपणम्
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यत्र तत् संस्थानविचयं नाम चतुर्थं धर्मध्यानमिति । धर्मध्यानस्य लक्षणान्याह - 'धम्मस्' इत्यादि, 'धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पन्नत्ता' धर्मस्य खलु ध्यानस्य चत्वारि लक्षणानि प्रज्ञप्तानि । चातुर्विध्यमेव दर्शयति- 'तं जहा ' इत्यादि, 'तंज' तथा 'आणाई' आज्ञा - सर्वज्ञवचनरूपा तत्र रुचिस्वया वा रुचिः श्रद्धानय् सा आज्ञारुचिः । 'निसग्गरुई' निसर्गरुचि: निसर्गात्स्वभावादेव तत्वश्रद्धानं निसर्गरुचिरिति । 'सुत्तरुई' सूत्ररुचिः सूजात् आगमात् रुचिः तत्त्वश्रद्धानमिति पुःरुचिः । 'ओगाढ रुई' अवगाढरुचिः अवगाढनमवगाढः द्वादशाङ्गाव गाहो वितरितेन रुचिरित्यवगाढरुचिः । अथवा - अवगाढः साधोः प्रत्यासन्नी भवनम् कारणात् वाधूपदेशेन या रुचि स्वत्वश्रद्धानम् सा अवगाढरुविरिति, ध्यान में निर्णय होना है वह संस्थानविचय नाव का चौथा धर्मध्यान का भेद ? | 'तं जहा' इस धर्मध्यान के लक्षण इस प्रकार से है - यही बात- 'धरान पी झाणस्तु चसारि लक्खणा पत्ता' इस पाठ द्वारा प्रकट की है 'आणाई' सर्वज्ञ की वचन रूप आज्ञा में जो रुचि है अथवा सर्वज्ञ के वचन से जो तत्वों का श्रद्वान है वह आज्ञारुचि नाम का धर्मध्यन का प्रथम लक्षण है । 'निसग्गरुई' स्वभावतः तत्वों में जो रुचि है- अर्थात् स्वभावतः जो तत्त्वों का श्रद्धान होता है यह धर्मध्यान का द्वितीय लक्षण है । 'सुत्तरुई' आगम को पढकर जो तत्रों में रुचि होती है तत्वों का श्रद्धान होता है वह सुत्ररुचि नाम का धर्मध्यान का तृतीय लक्षण है । 'ओगाढरूई' द्वादशाङ्ग में सविस्तर अवगाहन से जो रुचि तत्वार्थ श्रद्धान होता है वह अवगाढ रुचि नाम का धान का चतुर्थ लक्षण है अथवा - अवगाढ नाम है साधु की
ध्यानने। सस्थान वियय नाभने। थोथे। लेट छे 'त' जहा' या धर्मध्याननु लक्षषु या प्रमाणे हे वात 'धम्सस्स णं झाणस्त चत्तारि लक्खणा पन्नत्ता'या सूत्रपाठ द्वारा अगर उरेल हे 'आणारूई' सर्वज्ञना वयन ३५ आज्ञामां જે રૂચિ-પ્રીતી થવી અથવા સનના વચનથી, તત્વામાં જે શ્રદ્ધા છે. તે माज्ञायि नामनु' धर्मध्यान हेतु सक्षय के 'निसग्गरुई' स्वलावधी તત્વામાં જે રૂચિ પ્રીતિ થાય છે, તત્વામાં શ્રદ્ધા થાય છે. તે ધ યાનનું श्रीगु दक्षागु छे. २ 'सुत्तरुई' भागभाना अभ्यास श्रीने तत्वोमां ? ३थिं થાય છે, તવેામાં શ્રદ્ધા થાય છે, તે સૂત્રરૂચિ નામનુ ધમ ધ્યાનનું ત્રીજું अक्षय हे. 'ओगाट' द्वादशागमां सविस्तर अवगाहनथी ? तत्वार्थ श्रद्धान થાય છે, તે અવગાઢ રૂચિ નામના ધર્મ ધ્યાનના ચેાથેા ભેદ છે. અથવા
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