Book Title: Bhagwati Sutra Part 16
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 653
________________ ६२ प्रका टीका श०२६ उ. ३ सू०१ परस्परोपपन्नकनारकाणां वन्धस्वरूपम् टीका- ' परंपरोववन्नए णं भंदे ! नेरइए' परम्परोपपन्नकः परम्परया द्वितीयादि समयरूपया उपपन्न - उत्पन्नः, यस्योत्पत्तौ द्वयादि समया जाताः स एतादृशः खलु भदन्त ! नैरयिकः 'पार्व कम्मं कि बंधी पुच्छा' पापं कर्म-अशु भफलकं कर्म किम् अवघ्नात् बध्नाति यन्त्स्यतीत्यादिरूपचतुर्भङ्गका पृच्छया संगृहीत', भगवानाह - 'वोयमा' इत्यादि, 'नोयमा' हे गौवन ! ' आयेगइए पढम वितिया' अस्त्येककः प्रथमद्वितीयों के मदन्त ! कचिदेकः परम्परोपपन्नको नैरfree पापं कर्मा अवघ्नात् वर्त्तमानकाले बध्नाति, अनागतकाले C " परंपरोवबन्नए णं भले ! नेरहए पार्क कम्मं किं बंधी पुच्छा' इत्यादि टीकार्थ - हे भदन्त | जिस नारक जीव को उत्पन्न हुए प्रयादि-दो आदि समय हो गये हैं ऐसा वह 'पर पशेववन्नए नेरइए' परम्परोपपन्नक नैरविक 'पावकम्मं किं बंधी - पुच्छा' क्या पूर्वकाल में पापकर्म का बन्धक हुआ है ? वर्तमान में वह पपकर्म का चधक होता है क्या भविष्य में वह पापकर्म का बन्धक होगा क्या ? हत्यादि रूप से यहां चार भंगो को ग्रहण कर के प्रश्न के रूप में कथन करना चाहिये, उत्तर में प्रभुश्री कहते है - 'गोयमा ! अत्थेगहए. पदमपितिया' हे गौतम! कोई एक परम्परोपपन्नक नैरवि ऐसा होता है ? कि जिल के द्वारा पूर्वकाल में भी पापकर्म का अशुभ फलवाले कर्म का बन्ध किया गया होता है, वर्तमान में भी यह उसका बन्ध करता है और भविष्यत् काल में भी वह उसका वध करनेवाला होगा तथा कोई एक परम्परोपपन्नक नैरयिक ऐसा होता है कि जिस के द्वारा ટીકા—હૈ ભગવત્ જે ના૨ક જીવની ઉત્પત્તી એ વિગેરે સમયે માં हाय छे, मेव। ते 'परं परो बन्मए नेरइए' परम्परोपपन्नः नैरथि 'पाव' कम्म किं बधी पुच्छा' लूत असा थयो छे ? वर्तमान क्षणभ તે પાપ કર્મને આધ કરવાવાળો હોય છે ? ભવિષ્યમાં તે પાપક ને મધરો ઈત્યાદિ રૂપથી આ વિષયમા ચાર લગાત્મક પ્રશ્ન ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુશ્રીને उरेस छे. या प्रश्नना उत्तरसां प्रभुश्री गौतमस्वामीने हे छे - 'गोयमा ! अत्येगइए पढमबितिया' हे गौतम! अध शो परस्यरोपपन्न नैरथि એવા હોય છે કે જેના દ્વારા ભૂતકાળમાં પણ પાપક ને-અશુભકમ ના મધ કરાયે હાય- છે. વર્તમાન કાળમાં પણ તે તેને ખધ કરે છે. અને ભવિષ્યકાળમાં પણ તે તેને બંધ કરવાવાળા થશે. તથા કાઇ એક પરંપરાપ્

Loading...

Page Navigation
1 ... 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708