Book Title: Bhagwati Sutra Part 16
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 669
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२६ उ. ७ सू०१ परम्पराहारकना० पापकर्मबन्धः ६४५ इति पृच्छा आहारस्य द्वितीयादिसमये वर्तमानः परम्पराहारकः कथ्यते, स च परम्पराहारको नारकः पूर्वकाले पाप कर्म अवघ्नात्, वर्त्तमानकाले बध्नाति, अनागते मन्त्स्यति किम् ? इत्यादि रूप चतुर्भङ्गकः मनः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोमा' हे गौतम ! ' एवं जदेव परंपरोक्न एहिं उदेसो तदेव निरवसेसो भाणियन्त्र' एवं यथैव परम्परोदपन्न के स्तृतीय उद्देशकः कथित अवघ्नात् बध्नाति भन्त्स्यति, अवधनात् बध्नाति न भन्त्स्यतीति प्रथमद्वितीयमङ्गकः यावदनाकारोपयोगवैमानिकान्तः तथैव निरवशेषः समग्रोऽपि परम्पराहारकवैमानिकान्त इहापि भणितव्य इति 'सेवं भंते ! सेनं भंते । त्ति' तदेवं भदन्त । तदेवं भदन्त ! इति, हे भदन्त परम्पराहारकनारकादित आरभ्य वैमानिकान्तदण्डकेषु क्या पूर्वकाल में पापकर्म का बन्ध कर चुका होता है ? वर्तमान में भी वह उस पापकर्म का बन्ध करता है ? और क्या वह भविष्यत् काल में भी उसका बन्ध करेगा ऐसा होता है ? इत्यादि रूप से यहां जब चार भंगों को लेकर प्रश्न उपस्थित किया गया तब प्रभुश्रीने उनले ऐसा कहा - 'गोयमा " एवं जहेब पर परोधवन पहिं उद्देली तहेब निरवसेसो भात्रि' हे गौतम! जिल्ल रीति से परम्परोपपनकों के साथ तृतीय उद्देशक कहा गया है और यह उद्देशक अनाकारोपयोग वाले वैमानिकों तक कहना चाहिये, उसी प्रकार से रीति से परंपरा हारक के सम्बन्ध में भी वैमानिकान्त तक समस्त उद्देशक कहना चाहिये | 'सेत्रं भते । लेवं खते | न्ति' हे भदन्त ! परम्पराहारक नारका दि से लेकर वैमानिकान्त दण्डकों में जो आप देवानुप्रिधने पापकर्म -- કાળમાં પાપ કર્મોને ખધ કરી ચુકેલ હોય છે ? વર્તીમાન કાળમાં પણ તે એ પાપકમના બ`ધ કરે છે? અને ભવિષ્ય કાળમાં પણ તે પાપકના મધ કરશે ? વિગેરે પ્રકારથી ચાર ભંગાત્મક પ્રશ્ન ગૌતમસ્વામીએ ભગવાનને પૂછેલ छे, या प्रश्नना उत्तरभां अलुश्री गीतरस्वामीने हे छे डे- 'गोयमा ! एवं जद्देव पर परोववन्नएहि उद्देस्रो तहेव निरवसेो भाणियव्वो' हे गीतस પ્રમાણે પરમ્પરાપપનકના સ`ધમાં ત્રીજા ઉદ્દેશાનુ કથન કરેલ છે. અને તે ઉદ્દેશાનુ કથન અનાકારાપયેાગવાળા વૈમાનિકા સુધી ત્યાં કહેવાનુ` કહેલ છે, એજ પ્રમાણે અર્થાત્ એજ રીતે-અન"તરાહારના સમધમાં પણુ વૈમાનિકાના ક્થન પન્ત સઘળુ કથન કહેવું જોઈ એ. 'सेव ं भवे ! सेत्र' भंते ! त्ति' हे भगवन् परं पराहारम्ना२४ विगेरेधी सहने વૈમાનિક સુધીના દડામાં આપ દેવાનુપ્રિયે પાપકમ આદિના બંધના સબંધમાં

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