Book Title: Bhagwati Sutra Part 16
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 656
________________ भगवतीस्त्र अथ चतुर्थीद्देशक: मारभ्यते तृतीयोदेश के परम्परोपएचकनारकादीनाश्रित्य वक्तव्यता कथिता इह तु अनन्तरावगाढनारकादि चतुर्दिशति दण्डकालाश्रित्य पापकर दीनां वन्धवक्तव्यता कथ्यते, तदनेन सम्बन्धेन आयात चतुर्योदेशकस्येदं सत्रम्-'अणंतरोग, ढएणं' इत्यादि, मूल-अतरोवमाढए णमंते! रइए पावं कम्य किं बंधी पुच्छा, गोगमा! अत्थेगाइए एवं जहेन अणंतरोववन्नएहिं ननदंडगसहिओ उद्देलो अणिओ तहेव अणतशेवगाढएहि वि अहीणसतिरिन्तो मानियन्तो नेहए जाल वेशाणिए । सेवं भंते! सेवं संते ! ति ॥स्लू० १॥ ___ छवीसइसे वंधिलए चउत्थो उद्देतो समतो ॥२६-४॥ छाया- अनन्तरागाढः खल भदन्त ! नैरपिका पापं कर्म किम् अवधनात् पृच्छा, गौतम ! अत्येकका एवं यथैवानन्तरोपपनकै नदण्डकसहित उदेशको भणितः तथैवालन्तरागारपि अहीनातिरिक्तो भणितव्यो नैरपिकादिको यावद्वै मानिकः । तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त इति ! ॥सू० १॥ टीका-'अणंतरोचगाहरणं अंते ! नेरइए' अनन्तरावगाढः खलु भदन्त ! नैरयिकः ननु यो जीन एकस्यापि समयस्य अन्तरं विनैव उत्पत्तिस्थानमाश्रित्या चौथे उद्देशे का प्रारम तृतीय उद्देशक में परम्परोपपन्नक नारक आदि को लेकर वक्तव्धता बही गई है अभइल उद्देशकले अनन्तरावगाढ नारक आदि २४ दण्डको को आश्रित धारदे पापकर्मादि को से बन्ध के विषय की वक्तव्यता कही जावेगी-इसी संबंध से इस चतुर्थ उद्देशक को प्रारम्म किया जा रहा 'श्रणलरोधमाढए णं अंते ! नेरहए पावं कम्म' इत्यादि टीकार्थ--इस सूत्रधारा गौतमत्वांनीने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है થા ઉદેશાને પ્રારંભ– ત્રીજા ઉદેશામાં પરમ્પરો૫૫નક નારક વિગેરેને લઈને કથન કરેલ છે. હવે આ ઉદેશામાં અન તરવગાઢ નારક વિગેરે ૨૪ ચોવીસ દંડકેને આશય કરીને પાપકર્મ વિગેરેના બંધના સબંધમાં કથન કરવામાં આવશે. से समथा मा योथा देशना प्रारम्स ४२वामां आवे छे.-'अणत्तरोव गाढएण भंते ! नेरइए पाव कम्म' त्यहि ટીકાર્થ–આસૂત્ર દ્વારા ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીને એવું પૂછ્યું છે કે

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