Book Title: Bhagwati Sutra Part 16
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 664
________________ ६४० enedies ॥ अथ पष्ठोदेशकः प्रारभ्यते ॥ पञ्चमदेश के परम्परावगाढनारकादीनाश्रित्य वन्धवक्तव्यता कथिता, पृष्ठे तु अनन्तराहारकनारकादीनां वन्धवक्तव्यता कथयिष्यते, तदनेन सम्बन्धेनायातस्य पष्ठोदेशकस्येदं सूत्रम् -'अणंतराहारए णं भंते' इत्यादि । मूलम् - अणंतराहारए णं भंते ! नेरइण पावं कम्मं किं बंधी पुच्छा, एवं जहेव अणंतरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव निरवसेसं । सेवं भंते ! सेवं भने ! ति ॥ सू० १ ॥ छीससे वंधिए छट्टओ उद्देसओ समत्तो ॥ २६-६ ॥ छाया -- अनन्तराहारकः खलु भदन्त ! नैरयिकः पापं कर्म किम् अवन्धात् पृच्छा एवं यथैव अनन्तरोपपन्नकै रुदेशक स्वथैव निरवशेषम् ! तदेवं मदन्त ! तदेवं भदन्त । इति ॥ म्र० १ ॥ षड्विंशतितमश पष्ठदेशकः समाप्तः ॥ २६-६॥ टीका- 'अनंतराहारएणं भंते! नेरइए' अनन्तराहारकः, अनन्तरम् अन्तररहितम् व्यवहितम् उत्पत्तिक्षेत्रमाप्तिसमय समकालमेव य आहारयति सोऽनन्तराछड उद्देशक का प्रारंभ पंचम उद्देशक में परम्परावगाढ नारक आदि को आश्रित करके बन्ध की वक्तव्यता कही गई है, अब इस ६ छठे उद्देशक में अनन्तराहारक नारकादिकों के बन्ध की वक्तव्यता कही जावेगी इसी सम्बन्ध से यह ६ छठा उद्देशक प्रारम्भ हो रहा है 'अणंतराहारए णं भंते! नेरइए' इत्यादि टीकार्थ -- इस सूत्र द्वारा गौतमस्वामीने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है- 'अणंतराहारएणं भंते । नेरहए' हे भदन्त ! जो नारक उत्पत्ति क्षेत्र की प्राप्ति के समय में ही आहार करनेवाला होता है वह છઠ્ઠા ઉદેશાના પ્રાર ભ પાંચમા ઉદ્દેશામાં પરમ્પાત્રગાઢ નારક વિગેરેના ખધના સંબંધમાં કથન કરવામાં આવેલ છે. હવે આ છઠ્ઠા ઉદેશામાં અન તરાહારક નારક વિગેરેના મધના સબંધમાં કથન કરત્રામાં શ્યાવશે, એ સ*બંધથી આ છૂટ્ટા ઉદ્દેશાના प्रारंभ ४२वामां आवे छे.- 'अनंतराहारएणं भते नेरइए " त्याहि ટીકા--આ સૂત્ર દ્વારા ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીને એવુ' પૂછ્યું' છે કે'अनंत राह'रए णं भते । नेरइए' से लगवन् ने नार પ્રાપ્તિના સમયમાં જ આહાર કરવાવાળા હોય છે, તે उत्पाद - उत्पत्तिता क्षेत्री અન તરાડારક છે, અર્થાત્

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