Book Title: Bhagwati Sutra Part 16
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 661
________________ प्रमैयबन्द्रिका टीका श०३६ उ.५ सू०१ परम्परावगाढना पापकर्मबन्ध ६३७ - अथ पञ्चमोद्देशकः प्रारभ्यते - अथचतुर्योदेशके अनन्तरावगाढ नारकादीनाश्रित्य पापकर्मबन्धवक्तव्यता कथिता, पञ्चमे तु परम्परावगाढनारकादीनाश्रित्य वक्ष्यते तदनेन सम्बन्धेनाया तस्य पश्चमोद्देशकस्येदं सूत्रम्-'परंपरोकगाढए णं भंते' इत्यादि, . मूलम्-परंपरोवमाढए णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी० जहेव परंपरोववन्नएहिं उद्देलो लो क्षेत्र निरवसेसो भाणियव्यो। सेवं भंते ! सेवं भंते !.त्ति ॥सू०१॥ छवीसइमे बंधिसए पंचसो उद्देलों सलत्तो ॥२६-५॥ ____ छाया-परम्परावगाढः खलु भदन्त ! नैरयिकः पापं कर्म किम् अबध्नात् ० यथैव परम्परोपपन्नकै उद्देशकः स एव निरवशेषो भणितव्यः। तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ।मु०१॥ • पड्विंशतितमबन्धिशते पञ्चमोदेशकः समाप्तः ॥२६॥५॥ टीका-'परंपरोवगाढए णं भते ! नेइए' परस्परावगाढः उत्पत्तिसमयात् तृतीयादिसमयवर्ती खलु भदन्त ! नैरयिका 'पावं कम्मं किं बधी०' पापम् पांचवें उद्देशेक का प्रारंभ चतुर्थ उद्देशक में अनन्तरावगाह नारक आदि को आश्रित करके पापकर्म आदि के बन्ध के सम्बन्ध में वक्तव्यता कही गई है, अब पंचम उद्देशक में परम्पराषगाढ नारक आदि को आश्रित करके वही वक्तव्यता कही जावेगी, अत: इसी सम्बन्ध को लेकर यहां पंचम उद्देशक प्रारम्भ किया जा रहा है-- 'पर परोवगाढए णं भंते ! नेरइए पाबंक नं-हत्यादि टीकार्थ- इस सूत्र हारा गौतमस्थानी ने प्रशुश्री से ऐसा पूछा है-'परंपरोवगाढए णं भंते ! नेरइए' हे सदन्त ! जो પંચમા ઉદેશાનો પ્રારંભ– ચેથી ઉદ્દેશામાં અનંતરાવગાઢ નીરક વિગેરેને આશ્રય કરીને પાપકર્મ વિગેરેના બધા સંબંધમાં કથન કરવામાં આવેલ છે. હવે આ પાંચમા ઉદ્દેશામાં પરપરાવગાઢ નારક વિગેરેને આશ્રય કરીને એજ કથન કહેવામાં આવશે જેથી આ સંબધથી આ પાંચમાં ઉદ્દેશાને પ્રારંભ કરવામાં भाव छ.-‘पर परोवगाढए ण भंते ! नेरइए पाव फम्म' त्यादि ટીકાર્થ-આસૂત્ર દ્વારા ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીને એવું પૂછયું છે કે'परंपरोवगादए भंते ! नेरइए' स न् २यि ५२२५२ डाय छ,

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