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प्रमयचन्द्रिका टीका श०२६ उ.१ सू०१ बन्धस्वरूपनिरूपणम् ५३३ शुक्ललेश्यजीवस्य पापकर्मगोऽवन्यकत्वमध्यस्तीति । 'अलेसे णं भंते ! जीवे पावं कम्मं किं बंधी पुच्छा' अलेश्यो-लेश्यारहितो जीयः खलु भदन्त ! किं पापं कर्म अबध्नाति बध्नात् मन्त्पति १ अवघ्नात् पापकर्म, न बध्नाति, भन्स्यति २, पापं कर्म अबध्नाति बनात्, न भन्स्यति ३, पापं कर्भ अवध्नात् न वध्नाति, न भन्स्पति इत्येवं क्रमेण चतुर्भङ्गका प्रश्ना, भगवानाइ-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'बंधी न बंधा न वंधिस्सइ' अवघ्नात् पापं कर्म अलेश्यः जीवो न बध्नाति वर्तमान काले, तथा न मत्स्यति अनाग काले, लेश्यारहितः खलु अयोगी केवली तस्य च चतुर्थ एत्र मङ्गो भवति लेश्याया अमाचे बन्धकत्याभावात् शुक्ललेश्योचाले जीध में पापकर्म की अवधकता भी है । 'अलेस्से णं भंते ! जीवे पापं कम किं बंधी पुच्छ।' हे भदन्त जो जीव लेश्या रहित होता है-उसके द्वारा पूर्व काल में क्या पापकर्म का बन्ध किया गया होता है ? वर्तमान में वह क्या पाप कर्म का बन्ध करता है ? तथाभविष्यत् में वह पापकर्म का बन्ध करेगा क्या? अयषा-अतीत काल में क्या उसने पापकर्म का बन्ध किया होता है ? वर्तमान में क्या वह पापकर्म का बन्ध करता है ? भविष्यत् काल में क्या वह पापकर्म का बन्ध नहीं करेगा अथवा भूतकाल में क्या उसने पापकर्म का बन्ध किया है ? वर्तमाल में वह पारकर्म का क्या बन्ध नहीं करता है ? भविष्यत् काल में क्या वह पापकर्म का बंध करेगा? अथवा-वह क्या भूतकाल में पापकर्म का बन्धक हुमा है ? वर्तमान में वह पापकर्म का बन्धक क्या नहीं होता है ? और भविष्यत् काल में भी क्या वह पापकर्म का बन्धक नहीं होगा ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'बंधी, न बंधइ, न बंधिस्सई' हे गौतन! जो जीव लेश्या रहित होता है-वह भूतकाल में तो पापकर्म का धन्धक हुआ है, पर वर्तमान काल 'सलेस्से णं भंते । जीवे पाव कम्म कि षधी पुच्छा' है सावन २ ०१ લેશ્યા સહિત હોય છે, તેણે ભૂતકાળમાં પાપકર્મ કરેલ હોય છે ૧ વર્તમાન કાળમાં તે પાપ કર્માને બંધ કરે છે? ૨ અને ભવિષ્યમાં તે પાપકર્મને બંધ કરશે ? અથવા–ભૂતકાળમાં તેણે પાપ કર્મને બંધ કરેલ હોય છે ? વર્તમાનમાં શું તે પાપકર્મને બધ કરે છે ? ભવિષ્યકાળમાં શું તે પાપ કર્મને બંધ નહીં કરે ? અથવા તે ભૂતકાળમાં પાપ કર્મનો બંધક થ છે? વર્તમાનમાં તે પાપ કર્મને બધેક શું નથી થતું? અને ભવિષ્યમાં પણ તે પાપકર્મને બંધક નહીં થાય ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુત્રી કહે છે કે'वधी न बधइ न वधिस्वइ' गीतम! 2 सश्या सहित डाय छे,