Book Title: Bhagwati Sutra Part 16
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 650
________________ भगवतीसरे वनाति भन्स्स्यति, इत्याकारको ज्ञातव्यः । एवं मणुस्सज्ज जाव वेमाणियाणं' एवमनन्तरोपपन्नक नैरग्रिकवदेन मनुष्यवर्ज मनुष्यदण्ड विहाय यावद्वैमानिकानाम् अत्र यावत्पदेन भवनपति-पृथिव्याधे केन्द्रिय-द्वीन्द्रियादि-विकलेन्द्रियपञ्चेन्द्रियनिर्यग्योनिक-बानव्यन्तरज्योतिष्काणां ग्रहणं भवति, सर्वत्रापि पदेषु तृतीयो भलो ज्ञातव्यः । 'मणुस्लाणं सम्वत्थ तायवउत्या भंगा' मनुष्याणां सर्वत्र इत्तीयचतुओं सौ मनुष्यदण्ड के सर्वत्रापि पदेसु तृतीयचतुर्थी मङ्गो ज्ञातव्यौ यतोऽनन्तरोपपन्नो मनुष्यो न आयुर्व नाति भन्स्यति पुनश्वरमशरीरस्त्वसौ न वध्नाति न च मन्त्स्यतीति । 'नवरं कण्ठपक्खिएसु तइओ भंगो' नवरं कृष्णजानना चाहिये। ' एवं मणुस्लवज जाव वेमाणियाण' इसी प्रकार से अनन्तरोपपन्नक नैरपिक के जैसे मनुष्य दण्डक को छोड़कर वैमानिकपर्यन्त समझना चाहिये अर्थात् भवनपति पृथिवी आदि एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, तेन्द्रिय और चौन्द्रिय तथा पञ्चन्द्रिय तिर्थयोनिक, यानव्यन्त र ज्योतिपक और वैमानिक इन सब पदों में तृतीय भंग होता है। 'अणुस्लाणं सव्वस्थ तयचइत्था भंगा' मनुष्यों में सर्वत्र तृतीय और चतुर्थ भंग होते हैं। क्यों की अनन्तरोपपन्नक मनुष्य द्वारा पूर्वकाल में आयुका पन्ध किया गया होता है वह उसका वर्तमान में आयुकर्म का बन्ध नहीं करता है, भविष्यत् काल में यह उसका पन्ध कर्ता होता है । और यदि वह चरम शरीरदाला है तो वह न वर्तमान में आयका बन्ध करता है और न भविष्यत् काल में भी आयका पन्ध कर्ता होता है। 'नवरं कण्हपक्खिएस्सु तहओ भंगो' कृष्ण पण शुधानी र पहोमा 'अब प्नात् न बध्नाति, भन्स्यति' मा प्रभात श्री. 1 समन्व ये ‘एवं मणुस्खवज्जं जाव वेमोणियाणं' या शते અનોપપાક નિરયિકના કથન પ્રમાણે મનુષ્ય દંડકને છોડીને ભવનપતિ પૃથ્વી વિગેરે એક ઈન્દ્રિય, હીન્દ્રિય ત્રણ ઇદ્રિય અને ચાર ઈન્દ્રિય તથા પંચેન્દ્રિય તિર્યચનિક, વાનવ્યન્તર અને જ્યોતિષ્ક આ બધા પદોમાં ત્રીજો ભંગ હોય छ. 'मणुस्साण सव्वत्थ तइयचउत्था भंगा' मनुष्यामा मधेत्रीले भने व्याथा से એ જ ભગો હોય છે. કારણ કે અનંતરપપન્નક મનુષ્ય દ્વારા ભૂતકાળમાં આયુષ્યનો બંધ કરાયેલા હોય છે. તે વર્તમાન કાળમાં આયુષ્ય કર્મને બંધ કરતું નથી. અને ભવિષ્ય કાળમાં તે તેને બંધ કરવાવાળો હોય છે. અને જે તે ચરમ-અતિમ શરીરવાળા હોય તે તે વર્તમાન કાળમાં આયુકર્મને બંધ કરે છે અને ભવિષ્યમાં પણ આયુષ્યને બંધ કરવાવાળો હોય છે. 'नवरं कण्हपक्खिएसु, तइयो भंगो' पाक्षि मनत५५-४ भनुष्यामा

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