Book Title: Bhagwati Sutra Part 16
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 648
________________ ६२४ भगवतीसूत्र चन्नए णं भने ! नेरइए अनन्तरोपपन्नकः खलु भदन्त । नायिका 'आउन कम्म किं बंधी पुच्छा' आयुष्कं कर्म किम् अवधनाद बध्नाति भन्स्यत्तीत्याधाकारकश्च तुर्भङ्गकः पृच्छया संगृह्यते, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'बंधी न बंधइ बंधिस्सई' अनन्तरोपपन्नको नारकोऽतीतकाले आयुष्कं कर्म अवधनास् , वर्तमानकाले आयुरकं कर्म न बध्नाति, अनागतकाले आयुकं कम भन्स्यति इत्याकारकम्तीयो मङ्गो भगवता अनुमोदित इति भावः । 'सलेस्से गं भंते ! अणेतरोववन्नर नेरह सलेश्यः खलु भदन्त ! अनन्तरोपपनको नैरयिका __'अपनरोधकए णं भंते ! मेरहए' हे भदन्त ! जो नरयिक अनन्तरोपपन्न होता है-उस के द्वारा पहिले-भूनकाल में क्या आयुकर्म का पन्ध किया गया होता है? क्या वह बर्तमान में ललका पन्ध करता है ? क्या वह भविष्यत् काल में उसका बध फरेगा? इत्यादि रूप से शेष तीन प्रश्न और जी उद्भादित करना चाहिये, इस प्रश्न के उत्तर में प्रशुश्री कहते हैं-'गोयाना' हे गौतम ! 'बंधी, न बंधह, चंधिस्सह अननोपनक जो नैयिक होता है वह पूर्वकाल में आयुष्क कर्स का बन्ध कर चुका होना है वर्तमान काल में वह आयुष्क कर्म का बन्ध नहीं करता है, अनायतकाल में यह आयुषक कर्म का बन्ध करनेवाला होता है। इस प्रकार का या हलीम भंग यहां वक्तव्यमा है। 'मलेम्ले गं भंते ! अणंतरोवबन्लए नेहरहे भदन्त ! जो नैयिक अनन्तरोपपन्नक है और लेश्या युक्त है तो क्या उनके द्वारा पूर्वकाल ४ा मे अणंतरोववण्णएणं भते । नेरइए' 8 सपनर यि मनात ર૫૫નક હોય છે. તેણે પહેલાં ભૂતકાળમાં આયુષ્ય કર્મ નો બાધ કર્યો હોય છે ? વર્તમાન કાળમાં તે તેને બંધ કરે છે ? તથા ભવિષ્ય કાળમાં તે તેને બંધ કરશે? આ રીતે બાકીના ત્રણ પ્રશ્ન પણ સ્વયં બનાવી સમજી લેવા એ शत मा यार गम प्रश्न उत्तरमा प्रसुश्री छ -'गोयमा' ! 3 गौतम ! 'वधी, न बंधइ, वंविस्स३' मनन्त५५- 12 यि हाय छ, त ભૂતકાળમાં આયુષ્ય કમને બધ કરી ચૂકેલ હોય છે. વર્તમાનકાળમાં તે આ યુષ્ક કર્મનો બંધ કરતો નથી. અને ભવિષ્ય કાળમાં તે આયુષ્ય કર્મ બંધ ક૨ વાવાળ હોય છે. આ પ્રમાણેને ત્રીજો ભંગ અહિયાં સભવિત કહ્યો છે, ૩ 'सलेस्सेणं भंते ! अणंतरोबवण्णए नेरहए' भगवन् र यि मानत પપન્નક છે, અને લેસ્યાયુક્ત હોય છે, તે તેણે પૂર્વકાળમાં-ભૂતકાળમાં

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