________________
भगवतीसने चउभगो' सयोगिनः-योगवन: सामान्यतः सयोगिजीवस्य चतुर्मशः, चत्वारो भगा वक्तव्याः तत्र प्रथमो मनोऽभव्यस्य, द्वितीयो भङ्गो भव्यविशेषस्य, तृतीयो भन उपशमकस्य, चतुर्थो भङ्गः क्षपकस्येति । एवं मणजोगिमा वि वइजो. गिरस वि कायजोगिस्स वि' एवं सयोगिवदेव मनोयोगिनोऽपि वाग्योगिनोऽपि काययोगिनोऽपि चत्वारो भगा अमव्यभव्यविशेपोपशम कक्षयकानाश्रित्य ज्ञातव्या इति । 'अजोगिस्त चरिमो' अयोगिनो-चोगरहितस्य चरमो भगो ज्ञातव्यः व-यमान मन्तव्यमानयो स्तस्याभावात् इति १०। एकादशमुपयोगद्वारमाह'सागारोवउत्ते चत्तारि अनागारोवडत्ते वि चत्तारि भंगा' साकारोपयुक्तस्य तथा अनाकारोपयुत्तास्यापि चत्वारो भगाः अवघ्नात् बध्नाति मन्त्स्यत्तीत्यादिका
और चतुर्थ भंग क्षएक जीव को अश्रित करके होते हैं ऐसा प्रभुश्री ने समर्थिन किया है १० योगहार-'लजोगिस्स च उभंगो' लयोगी जीव के चारों ही भंग होते हैं, इनमें प्रधान भंग अभय लयोगी जीव की अपेक्षा से होता है, द्वितीय भंग भय सयोगी जीव की अपेक्षा से होता है, तृतीय भंग उपशभक सयोगी की अपेक्षा ले और चतुर्थ भंग क्षपक सयोगी की अपेक्षा से होता।
___एवं रणजोगिस्स वि बहजोगिम्स नि काजोगिस्स वि' सयोगी के जैसे ही चारों भंग मनोयोगी, वचनबोगी के और काययोगी के होते हैं। जो मनोयोगी अभव्य होता है उसकी अपेक्षा से प्रथम भा जी मनोयोगी भव्य होता है उसकी अपेक्षा से द्वितीय भंग, जो मनोयोगी उपशमक होता है उसकी अपेक्षा से तृतीय भंग और जो मनोयोगीक्षपक होता है उसकी अपेक्षा से चतुर्थ भंग
पला जानना चहिये, इसी प्रकार से बचन योगी और शाययोगी में भी जानना चाहिये, 'अजोगिस्स चरमो' अयोगी जीव के केवल एक જીવની અપેક્ષાથી હોય છે. ત્રીજો ભંગ ઉપશમવાળા સગીની અપેક્ષાથી मन. व्यायाम क्ष५४ श्रेणीवाजा सयोगीनी अपेक्षाथी साय छे. 'एवं मण. जोगिस्त्र वि, वइजोगिस्स कि, कायजोगिस्स वि' सयागी ना ४थन प्रमाणे ચારે ભંગે મને ગવાળા, વચનગવાળા, અને કાયાગવાળા જીવને હોય છે. જે મનેગી અભવ્ય હોય છે, તેની અપેક્ષાથી પહેલે લગ કહ્યો છે. જે મને ચોગી ભવ્ય હોય છે, તેની અપેક્ષાથી બીજો ભંગ છે. જે મને યોગી ઉપશમવાળા હોય છે, તેની અપેક્ષાથી ત્રીજો ભંગ અને જે મનેયોગી ક્ષક શ્રેણીવાળા હોય છે, તેની અપેક્ષાથી એ ભંગ થાય છે તેમ સમજવું. એજ પ્રમાણે વચનગી અને કાયાગીના સંબંધમાં પણ સમજી લેવું.