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भगवतीसत्र मङ्गका प्रश्नः पृच्छया परिप्रायते । जगपानाह-गोयया' इत्यादि, 'गोरमा' हे गौतम ! 'अस्थगइए बंधी बंधइ वंधिस्तs' अस्त्येसकोऽवजार बध्नाति भन्स्यति मंथमो मङ्गः कृष्णपाक्षिकस्य, तथा 'अत्यगइए बंधी न बंधइ बंधिस्मा' अस्त्येकका कृष्णपाक्षिकोऽवधनात् न बध्नाति शास्पति कृष्णपाक्षिकस्य प्रथमतृतीयौ द्वौ भनी भवतः । तत्र प्रथमो भङ्गः अभव्यमायस्य कृष्णपाक्षिकस्य भवति, तृतीय मास्तु कर्म फा बन्ध किया है ? वर्तमान में वह क्या आयुर्म का यन्ध करता है ? भविष्यत्काल में क्या वह आयुकने का बन्ध करेगा ? अथवाभूतकाल में उसने आयुर्म का पन्ध दिया है ? वर्तमान में वह आयु. कर्म का पन्ध करता है? अविष्यत् काल में वह आयुकर्म का बन्ध नहीं करेगार अथवा-भूलकाल में उसने आयु कर्म का बन्ध किया है धर्तमान में वह आयुकर्म का पन्ध नहीं करता है? और भविष्यत् में यह आयु फर्म का बन्ध करने लगता है ३? अथवा-भूतकाल में उसने आयुकर्म का पन्ध किया है ? वर्तमान में यह आयुकर्म का पन्ध नहीं करता है ? और अविष्यत् में भी वह आयुकर्म का बन्ध नहीं करेगा? इस प्रकार 'अब मात्, अध्नाति अन्त्यति१ अरमात, मध्नाति न पन्तस्यतिर अबध्नात् , न बध्नाति, भन्स्थति,३ अपनात् न पनाति, न भन्स्यति' यह चोर भंगोबाला प्रवन है। ऐसा यह प्रस पृच्छा' शब्द से गृहीत किया गया है । इस प्रश्न के उत्तर में प्रशुश्री गौतमस्वामी से कहते है-'गोयमा! अत्थेगहए बंधी पंधा बंधिस्लाइ' हे गौतम ! બંધ કર્યો છે જે વર્તમાનમાં તે આયુકર્મનો બંધ કરે છે ? તથા ભવિષ્યમાં તે આયુકર્મને બંધ નહીં કરે? ૨ અથવા ભૂતકાળમાં તેણે આયુકર્મને બંધ કર્યો છે? વર્તમાનકાળમાં તે આયુકમને બંધ નથી કરતો? તથા ભવિષ્યકાળમાં તે આયુકમને બંધ કરવા લાગે છે? ૩ અથવા ભૂતકાળમાં તેણે આયુકમને બંધ કર્યો છે? વર્તમાનમાં તે આયુકમનો બંધ નથી કરતે? અને ભવિષ્યમાં તે આયુકર્મને બંધ નહીં કરે ? આ પ્રમાણે 'अबध्नात, बध्नाति, भन्स्यति १ अवघ्नात् बध्नाति न भन्स्यति २ अवघ्नात् न बध्नाति न भन्स्यति' । या२ गावागे। श्रीगौतमपाभीय प्रश्न ४२० . मा प्रश्न 'पुच्छा' ५४थी अर राय . या प्रश्नना उत्तरमा असुश्री गौतभस्वामीन ४ छे -'गोयमा ! अत्थेगइए बंधी, बधइ, बंधिस्सई' 3 ગૌતમ! કે કૃષ્ણ પાક્ષિક જીવ એ હોય છે કે-જેણે પૂર્વકાળમાં આયુષ્ય કર્મ બાંધેલ હોય છે. વર્તમાન કાળમાં પણ તે તેને બંધ કરે છે. અને