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भगवतसूत्रे
धर्मध्यानस्य भेदान् लक्षणं च पद आलम्बनानि दर्शयन्नाह - 'धम्म सणं' इत्यादि, 'धम्मस्स णं झागस्स वत्तारि आलंबणा पन्नत्ता' धर्मस्य खुलु ध्यानस्य चत्वारि आलब्पनानि ज्ञवानि धर्मध्यानमालादशिखरारोहणाय यानि आलम्बन्ते तानि आलम्बनानि वाचनादीनि चत्वारि अग्रे वक्ष्यमाणानि । चातुर्विध्यमेव दर्शयति- 'तं जहा ' इत्यादि, 'तं जहा' तथा 'बाणा' वाचना आगमानाम् अध्ययनमित्यर्थः 'पडिपुच्छणा' प्रतिपृच्छना - आगमनिपचे पुनः पुनः प्रश्न इत्यर्थः, 'परियणा' परिवर्तना पुनरावर्त्तनम् अधीतशास्रस्य पुनः पुनरध्ययनम् स्मृतिशय 'धपका' धर्मकथा धर्मस्य कथनमित्यर्थः । 'धम्मस्स णं वास्स चचारि अणुप्पेहाओ पन्नताओं धर्मस्य खलु ध्यानस्य चतसमीपता के होने का तो उनके उपदेन से जो तत्थ श्रद्धान होता है वह अवगाढरुचि है | अब धर्मध्यान का आलम्बन कम है इस बात को कार प्रकट करते है- 'घणं झाणरत चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता' इसमें वे यह कहते हैं कि व्यानरूपी प्रासाद (मल) के शिखर पर चढने के लिये जो आलम्बन भूत होते हैं वे धर्मध्यान के आलम्बन (आधार) है और ये आलम्बन चार प्रकार के कहे गये हैं इसमें प्रथम आलम्बन - 'वायणा' चाचना है - आगमों का अध्ययन करना इसका नाम वाचना है । 'पडिपुच्छणा' अधीन शास्त्र में शंकादि के कारण जो गुरु महाराज को पूछा जाता है यह प्रतिप्रच्छना है । 'परियहण' अधीत शास्त्र का बारबार स्मृति बनी रहने के लिये अध्ययन करना इसका नाम परिवर्तना है । 'वम्सकहा' धर्म का उपदेश
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અવગાઢ એ સાધુની સમીપપાને કહે છે એટલે કે તેએાના ઉપદેશથી તત્વામાં જે શ્રદ્ધા ઉત્પન્ન થાય છે, તે અવગાઢચિ કહેવાય છે.
હવે ધર્માંધ્યાનનું અવલમ્બન શુ' છે? એ વાત સુત્રાર પ્રગટ કરે છે. 'धम्मस्स ण' झाणस्स चत्तारि आलवणा पन्नत्ता' मा सूत्रपाठथी सूत्रार मे કહે છે કે-ધર્મધ્યાન રૂપી પ્રાસાદ (મહેલ) પર ચઢવા માટે આલમ્બનઆધાર રૂપ જે હાય તે ધર્મધ્યાનના આલમ્બન આધાર કહેવાય છે. અને तेवा आधार यर प्रअरना छे तेयां पडेड' भासम्मन 'वायणा' वाथना छे. આગમાનું વારવાર પિરશીલન કરવું' તેનુ નામ वाथना छे. 'पडिपुच्छणा અધ્યયન કરેલા સૂત્રની સ્મૃતિ-યાદદાસ્ત કાયમ રહે તે માટે વાર વાર અધ્યયન ४२ तेनु नाम परिवर्तन छे. 'धम्म वहा' धर्मना उपदेश ४२वा तेनुं नाभ धर्म या छे. 'धम्मस्स ण झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पन्नत्ताओ' मे रीते