________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०१९ ध्यानस्वरूपनिरूपणम्
४८९
व्युत्सर्गः - द्रव्यत त्यागः चतुर्विधः प्रज्ञप्त इति । 'तं जह।' तद्यथा - 'गणविसग्गे' गणव्युत्सर्गः, तत्र व्युत्सर्गो नाम अनभिष्वङ्गतात्याग इत्यर्थः परिहारविशुद्धवारित्रार्थ जिनकल्पाचा घनाय गगस्य व्युत्सर्गस्यागो गणव्युत्सर्गः सोऽयं प्रथमोव्युत्सर्गः १ | 'सरीरविजलभ्गे' शरीरव्युत्सर्गः - शरीरनिष्ठासक्तेः परित्यागः । 'उवहिविद्यतग्ने' उपधिव्युत्सर्गः - वस्त्र पात्रादिसंयमोपकरणेष्वपि आमक्ति परि वर्जनमिति । 'माणविसग्गे' भरूपानव्युत्सर्गः 'से चं दव्वविसग्गे' सोऽयं द्रव्यorea निरूपित रहि | भावव्युत्सर्ग ज्ञापनायाह - ' से किं त' इत्यादि,
भदन्त ! द्रव्यन्युत्सर्ग का क्या स्वरूप है और कितने उसके भेद हैं ? उसर में श्री कहते है- 'दविसग्गे चव्विहे पण्यते' हे गौतम! द्रव्यव्युत्सर्ग चार प्रकार का कहा गया है । 'तं जहा' जैसे - 'गणविउसम्ये' गणव्युरस्सर्ग- व्युत्सर्ग शब्द का अर्थ आसक्ति का त्याग है । परिहार विशुद्धि चरित्रके लिये अथवा जिनकल्प यादि की आराधना के लिये गण का जो त्याग कर दिया जाता है वह गणव्युरसर्ग है । यह व्युत्सर्ग का प्रथम भेद है । 'सरीरविसग्गे' शरीररसर्ग शरीर सम्बन्धी आसक्ति का त्याग यह व्युत्सर्ग का द्वितीय भेद है । 'उवहि विसग्गे' उपधिव्युत्सर्ग-वस्त्र पात्र आदि जो संयम के उपकरण हैं उनके भी अशक्ति का जो त्याग है यह व्युत्सर्ग तप का तृतीय भेद
| 'भानचित्रसम्गे' भक्तपानव्युत्सर्ग आहार पानी का त्याग करना - यह व्युर्ग का चतुर्थ भेद है । 'सेत्त' दव्व विसग्गे' इस प्रकार से यह द्रव्यव्युस्वर्ग हैं । 'हे किं तं भावविलग्गे' हे भदन्त ! आपसर्ग लेह ४ह्या छे? या प्रश्नना उत्तरमां प्रभुश्री छे - 'दव्त्रविसग्गे चवि पण्णत्ते' हे गौतम! द्रव्य व्युत्सर्ग यार प्रहार उस छे 'त' जहा' ते या अभा]. छे. - 'गणविउसभगे' गायन्युत्सर्ग, व्युत्सर्गी शहना अर्थ आसકિતના ત્યાગ એ પ્રમાણે છે. પરિહારવિશુદ્ધિક ચારિત્ર માટે અથવા જીનકલ્પ વિગેરેની આરાધના માટે ગણુને જે ત્યાગ કરવામાં આવે છે, તે ગણુ યુ. ત્સગ કહેવાય છે. આ વ્યુત્સગના પહેલા ભેદ થાય છે.
'सरीरविसग्गे' शरीर व्युत्सर्ग शरीर संबंधी आसता त्याग भा व्युत्सर्गाना जीले लेह उस छे 'उवहिविउसो' उपधि व्युत्सर्ग- वस्त्र, पात्र, વિગેરે જે સ યમના ઉપકરણે છે. તેમાં પણ આસકિતને જે ત્યાગ કહેલ છે ते व्युत्सर्ग तपने। त्रीले लेह थाय छे उ 'भत्तपाणविसग्गे' लतयान व्यु સગ–માહારપાર્થના ત્યાગ કરવા આ વ્યુત્સગના ચેાથોભે કહેલ છે. 'से त्त' दव्वविलग्गे' मा रीते या द्रव्य व्युत्सर्जना ले हो ह्या छे,
भ० ६२