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प्रभैन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सु०५ एकविंशतितमं बन्धद्वार निरूपणम् ३५१ प्रकृती नातीति भावः । ' एवं जान परिहारविमुद्धिए' एवं यावत् परिहारविशुद्धिकः, यथा सामायिकसंयत एवं यावत् परिहारविशुद्धिकसंयतोऽपि सप्तविधकर्मप्रकृति वंधको वा भवति, अष्टविधकर्मप्रकृतिवन्धको वा भवति तत्र सप्त प्रकृतीनां वन्धको भवन आयुष्कवर्जिताः सप्तप्रकृती वैध्नाति अष्ट वध्नन् परिपूर्णा अष्टावपि तस्य वद्धा भवन्ति अत्र यावत्पदेन छेदोपस्थापनीय संयतस्य ग्रहणं भवति तथा च अयमपि सप्त कर्मप्रकृतीनां वा चन्धको भवतीति, 'सुहुमसंपरायसंजय पुच्छा' सूक्ष्म संपरायसंयतः खल भदन्त । कतिकर्म प्रकृती धनातीति पृच्छा - प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम | 'आउयमोहणिज्जवज्जाओ छ कम्मपगडीओ बंधई' आयुष्कमोहनीयवर्णाः पट्कर्मप्रकृती मातिसूक्ष्म पराय संयतः, अयं हि आयुष्ककर्मणो वन्धको न भवति अममता
करता है, और जब यह आठ प्रकार की कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है तब यह सम्पूर्णरूप से आठ कर्म प्रकृतियों का बन्ध करता है । 'एवं जाव परिहारविसुद्धिए' इसी प्रकार से छेदोपस्थापनीय संयत और परिहारविशुद्धिकसंयत भी सात प्रकार की और आठ प्रकार की कर्मप्रकृतियों का बन्ध करते हैं । सात प्रकार की कर्म प्रकृतियों के बन्ध करने में वे आयुष्क कर्म का बन्ध नहीं करते हैं और आठ प्रकार की कर्म प्रकृतियों के बन्ध करने में वे सम्पूर्ण ज्ञानावरणादिक कर्मप्रकृतियों का बन्ध करते हैं। 'सुहमसंपरायसंजर पुच्छा' हे भदन्त ! सूक्ष्म संपत कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोयना ! आउय मोहणिज्जवज्जाओ छ कम्म पगडीओ बंध' हे गौतम ! आयुष्क और मोहनीय कर्म प्रकृतियों को साथी आहे आठ अमृतियोो अन्ध हरे छे. 'एव' जाव परिहार विसुद्धिए' मे४ प्रभाषे हेहोपस्थापनीय संयंत अने परिहार विशुद्धि सायत પણ સાત પ્રકારની અને આઠ પ્રકારની કમ પ્રકૃતિચેના ખધ કરે છે. જ્યારે તે સાત પ્રકારની ક્રમ પ્રકૃતિયેાના અધ કરે છે, ત્યારે તે આયુષ્ય ક પ્રકૃતિના ખંધ કરતા નથી. અને જ્યારે આઠ પ્રકારની ક્રમ પ્રકૃતિયાને બંધ કરે છે, ત્યારે તે સ ́પૂર્ણ જ્ઞાનાવરણીયાદિ આઠેક પ્રકૃતિયાના બંધ કરે છે. 'सुहुमसपरायसंजए पुच्छा' हे भगवन् सूक्ष्मस'पराय संयंत डेटली ४ अतियाना घरे छे ? या प्रश्नना उत्तरमा अनुश्री आहे - 'गोयमा ! आउयमोहणिज्जवज्जाओ छ कम्मपगड़ीओ बंध' हे गौतम!
आयुष्य