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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०८ प्रतिसेवनायाः निरूपणम् 'तं जहा' तद्यथा-'दप्प' दर्प 'दप्प' इत्यादौ सर्वत्र सप्तमी विभक्ति ज्ञातव्या तेन द विद्यमाने सति प्रतिसेवना भवति दर्पश्चाभिमानादि, तथा च अभिमानात्मकद सति या संयमविराधना सा दर्पप्रतिसेवनेति१ । 'पमाद' तथा प्रमादेसति-मादश्च-मद्यविषयकपायनिद्राविकथा रूपः २। 'गाभोगे' अनाभोगे, सति अनाभोगश्च अज्ञानादिः तस्मिन् सति प्रतिसेवनेति तृतीया ३ । 'आउरे' दसविहा पडिसेवणा पत्ता' हे गौतम ! प्रतिसेवना १० प्रकार की कही गई है। प्रतिकूल लेवना का नाम प्रतिसेवना है। प्रति लेवना का दूसरा नाम संयमविराधना है। यह संयमविराधनारूप प्रतिसेवना संयम के दोषरूप होती है । अतः संथम के दोष कितने होते हैं ? ऐसा यह प्रश्न का वाच्यार्थ है । और संयम के दोष १० होते हैं । ऐसा यह उत्तर है । संयम के वे १० दोष इस प्रकार से है-'पप्पमाद अणाभोगे आउरे आवईय, संझिन्ने सहलक्कारे अघपाओसा य वीमंता' यहां दर्प इत्यादि पदों में ससमी विभक्ति हुई है ऐसा जानना चाहिये। तथा च-दर्प के होने पर प्रतिसेवना होती है । दर्प नाम अभिमान आदि का है अभिमानात्मक दर्प के होने पर जो जो संयम की विरा धना होती है वह दर्प प्रतिसेवना है १। 'पमाद' मद्यपान, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा इन रूप प्रमाद होता है । इस प्रमाद से जो संयम की विराधना होती है वह प्रमादविराधना है २। अज्ञान आदि का नाम अनाभोग है । इस अज्ञानादिरूप अनाभोग के होने है-'गोयमा ! दसविहा पडिसेवणा पण्णत्ता'गौतम ! प्रतिसपना १० इस પ્રકારની કહી છે, પ્રતિકૂલ સેવનાનું નામ પ્રતિસેવના છે. તથા પ્રતિસેવનાનું બીજું નામ સંયમ વિરાધના છે. આ સંયમ વિરાધના રૂપ પ્રતિસેવના સંય‘મના દેષ રૂપ હોય છે. જેથી સંયમના દે કેટલા હોય છે? આ રીતને.
આ પ્રશ્નનો હેતુ છે અને સંયમના દોષ દસ છે એ પ્રમાણેને પ્રભુશ્રીએ उत्तर ४९ ले ते इस हो२। प्रमाणे छे. 'दपप्पमाद् अणाभोगे आउरे आवईय, संकित्ते सहसक्कारे भयप्पओसाय वीमंसा' मडिया ६५ वगैरे पट्टोमा સપ્તમી વિભક્તિ થઈ છે, તેને અર્થ આ પ્રમાણે છે દર્પ–અહંકાર થાય ત્યારે પ્રતિસેવના થાય છે. દર્પ અહંકાર-અભિમાનને કહે છે. અર્થાત અભિમાન રૂપ દર્પ થાય ત્યારે જે સંયમની વિરાધના થાય છે, તે દર્પ પ્રતિसेना पाय छे. १ 'पमाद' मधपान (३ विगैरे) विषय, पाय, निद्रा અને વિકથા રૂપ પ્રસાદ હેય છે આ પ્રમાદથી જે સંયમની વિરાધના થાય