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भगवती ४३७ दित्यर्थः । अनिहारिमं तत् यत्र मृतशरीरं वहिन नीयते गिरिकन्दरादौ गत्वा संस्तारककरणमिति । 'नियमं अपडिक्कमे तत्र पादपोपगमनम् अनशनम् निय. मात् अप्रतिकर्म सेवादि मतिकमरहितं भवति । 'से तं पाओवगमणे' तदेतत् पादपोपगमनं नामानशनमिति । 'से किं तं भत्तपच्चक्खाणे' अथ किं तत् भक्तपत्याख्यानम् उत्तरमाह-'भत्तपचक्खाणे दुविहे पन्नत्ते' भक्तमत्याख्याननामक यावत्कषिकमनशनं द्विविधं प्रज्ञप्तम् 'तं जहां तद्यथा-'नीहारिमे य अणीहारिमे य' निहीं रिमं वानिर्दारिमं च 'नियमं सपडिकम्मे' नियमात् समतिकर्म सेवादिप्रति. कर्म सहित नियमादेव भवति । 'से तं भत्तपच्चरवाणे तदेतत् भक्तप्रत्याख्यानम् 'सेत आवकहिए' तदेतद् यावत्कथितम्, 'सेतं अणसणे' तदेतत् अनशननामक बाहर निकाला जाता है और जिसमें मृतफशरीर उपाश्रय से बाहर नहीं निकाला जाता है वह अनि रिम है । यह गिरिफन्दरा आदि में जाकर के किया जाता है 'नियमं अपडिस्कम्मे' यह पादपोपगमन अनशन नियम से सेवादि प्रतिकर्म से रहित होता है से तं पाओबामणे' इस प्रकार यह पादपोपगमन अनशन है । 'से किं तं भत्तपच्चक्खाणे' हे भदन्त ! भक्तप्रत्याख्यान अनशन कितने प्रकार का है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पण्णत्ते' हे गौतम ! भक्तप्रत्याख्यान अनशन दो प्रकार का है । 'तं जहा' जैसे'नीहारिमेय अनीहारिमे' निहारिम और अनिहारिम 'नियमं सपडि. कम्मे यह भक्तप्रत्याख्यान नियम से सेवादि प्रतिकर्म वाला होता है। 'से तं भत्तपच्चक्खाणे' इस प्रकार से यह भक्त प्रत्याख्यान तप है। 'सेत्तं आवकहिए, सेत्तं अणसणे यहां तक अनशन तप का द्वितीय આવતું નથી તેને અનિહરિમ તપ કહેવાય છે. આ અનિહરિમ પાદપપગમન त५ पतनी १३ विगैरेम न ४२वामा माछ. 'नियम अपडिक्कम्मे' આ પાદપપગમન અનશન નિયમથી સેવા વિગેરે પ્રતિક્રિયા વિનાનું હોય हे. 'से त्त पाओवगमणे' मा शत मा पापारामन उसले. 'से कित्त भत्तपच्चक्खाणे' मन् मत प्रत्याभ्यान मनशन डेटा प्रारना केस छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ-'भत्तपच्चक्वाणे दुविहे पण्णत्ते' ॐ गौतम ! सतप्रत्याभ्यान मनशन मे. प्रा२नुं ४ छे. 'त जहा' त माप्रमाणे छ.-'नीहारिमे य अनीहारिमे य' निहारिभ भने मनिहारिभ 'नियम सपडिक्कमे' मा मतप्रत्याभ्यान नियमयी सेवा विगेरे प्रतिभवाणु डाय छे. से त भत्तपच्चक्खाणे' मा Na मा मत प्रत्याज्यान त५४ छ. 'से तं आवकहिए से तं अणसणे' मही सुधी मनशन तपनी मीन २ २