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भगवतीस्त्र 'उक्कोसेणं सहस्सपुहुत्त' उत्कण सा.पृथक्त्वम् हिसहस्सादारभ्य नब सहम. पर्यन्ताः कषायकुशीला एकसमये जायन्ते इति । 'पुरपडिजए पच्च' पूर्वप्रतिपन्नकान् कपायकुशीलान् प्रतीत्म-अपेक्ष्य, 'जहन्नेणं कोडिसहसमपुरतं' जघन्येन कोटिसहसपृ पक्त्वम् द्विकोटिसहस्रादारभ्य नकोटि सहमपर्यन्ताः कषायकुशीला प्रतिसमयं जायन्ते, 'उकोलेण वि कोडिमहम्मपुतं' उत्कर्पतोऽपि कोटिसहपृथक्त्वम् । ___ ननु सर्वसंरतानां दोटिसहपृथकत्वगन्यत्र श्रूयते । इह तु केवलाना कपायकुशीलानामेर कोटिमहसूप्यक्त्वं कथितम् ततः पुलाकादिसंख्या तदतिरिक्ता भवतीति कोटिसापृथक्त्वकथनमत्र विरुद्ध मति वेदत्रोच्यते कपायतिनिवा' यदि कपायऋशील एका नभय में हो तो जघन्य से एक भी हो सकता है दो भी हो सकता है और तीन भी हो सकता है और 'उकोलेणं सहरूलपुहत्त' उत्कृष्ट से एक समय में दो हजाह से लेकर ९ हजार तक हो सकते हैं। तथा-'पुष्यपडिबन्नए पटुच्च' तथा पूर्वप्रति. पन्न करायकुशीलों की अपेक्षा से 'जहन्नेणं फोडिसहस्सपुतं' जघ. न्यरूप में कषायकुशील कोटिसहस्र पृथक्त्व दो हजार करोड से लेकर नौ हजार करोड़ तक प्रति समय में होते हैं 'उसोसेण वि कोडिसहस्स पुष्कृत्त' और उत्कृष्ट से भी वे प्रति समय में कोटिसहस्रपृथवत्व होते हैं। - शंका--समस्त संयतों का प्रमाण कोटि सत्र पृधत्व अन्य शास्त्रों में सुना जाता है परन्तु यहां तो केवल अपायकुशीलों को ही कोटि बहस पृथक्त्व फहागया है और जब इसमें पुलाकादिकों की संख्या मिलादेते हैं तो स्वभावतः यह संख्या और अधिक हो जाती है। अतः कोटिसहन पृथक्त्व का कधन विरुद्ध पड़ जाता है। હિય તે જઘન્યથી એક પણ હોઈ શકે છે. બે પણ હોઈ શકે છે, અને ત્રણ पए लाश छे. भने 'उक्कोसेणं सहस्सपुहुत्तं' था । समयमा मे नारथी एन ८ नव ॥२ सुधी डाय छे. 'पुनपदिवन्तए पडुच्च' तथा पूर्व प्रतिपन्न पायाशी यानी अपेक्षाथी 'जहन्नेणं कोडिसयपुहत्त' धन्य ३५था કષાયકુશીલેં બે કડથી લઈને નવ કરોડ સુધી એક સમયમાં હોય છે. 'उक्कोसेण वि कोडिसयपुहुत्त' मने थी पर तसा मे समयमा २ २ કરોડથી લઈને નવ કરોડ સુધી હોય છે. ' ४-सा सयानु टि सन पृथ५मीत शास्रोमा सासનવામાં આવે છે. પરંતુ અહિયાં કેવળ કષાયકુશીલોને જ કેટિસહમ પૃથફત્વ કહેલ છે. અને જ્યારે તેમાં પુલાક વિગેરેની સંખ્યા મેળવવામાં