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भगवती
प्रज्ञप्तः सामायिकसंयतः । 'तं जहा ' तव्यथा - 'इत्तरिए य जान कहिए य' इत्वरिकव यावत्कथिकथ चारित्र्ग्रहणानन्तरम् इत्वरस्य भाविच्छेदोपस्थापनीयसंयतत्वव्यपदेशान्तरस्वेन अल्पकालिकस्य सामायिकस्यास्तित्वात् इत्वरिकः स चारोपयिष्य माणमहाव्रतः प्रथमचरमतीर्थकरसाधु भवतीति । यावत्कथिकस्य भाविव्यपदेशान्तराभावात् यावज्जीविकस्य सामायिकस्यास्तित्वाद् यावत्कथिकः, स च मध्यमतीर्थकर महाविदेहतीर्थकरसाधु भवतीति । 'छेदोपट्टावणियसंजय णं पृच्छा'
rainerant प्रश्री से ऐसा पूछते हैं- 'सामाययसंजए णं भते | कहविहे पन्नन्ते' हे भदन्त ! सामायिक संयत कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते' हे गौतम | सामायिक संयत दो प्रकार का कहा गया है । 'तं जहा' जैसे -' इत्तरिए य आवकहिए य' इत्वरिक और यावत्कथिक जिस सामा यिक संयत के चारित्र ग्रहण करने के अनन्तर भविष्य में छेदोपस्थापनीय संयत्तपने का व्यपदेश-व्यवहार होता है यह इत्वरिक अल्पकालिक सामायिक संयत कहालाता है । और सामायिक चारित्र लेने के बाद जिसमें दूसरा व्यपदेश नहीं होता है वह यावत्कनि सामायिक संयत कहलाता है इत्यरिक सामायिक संयत आगे जिस में महाव्रतों का आरोप होना होता है ऐसा होता है और ऐसा यह प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर का साधु होता है । तथा यावत्कथिक में सामायिक धावत् जीव विद्यमान होती है । ऐसा यह साधु मध्यम तीर्थकरों का और महाविदेहस्थ तीर्थंकर का साधु होता है ।
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हवे श्रीगीतभस्वाभी अनुश्रीने शेवु यूछे छे - 'सामाइयसंजए णं भंते ! कइविहे पन्नत्ते' के लगवन् सामायिक संयंत डेंटला प्रारना वासां खाव्या छे ? म प्रश्नना उत्तरमा अनुश्री - 'गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते' डे गौतम | सामायिक संयत मे अारना वामां आवे छे 'तं जहाँ ते मा प्रभा छे. 'इत्तरिए य आवकहिए य' त्वरि भने यावल थिए ? सामाયિકમાં ચારિત્ર ગ્રહણ કર્યા પછી ભવિષ્યમાં છે।પસ્થાપનીય સયતપણાના ન્યપદેશ-વ્યવહાર થાય છે, તે ઈકિ–અલ્પકાળવાળા સામાયિકસ ચત કહેવાય છે અને સામાયિક ચારિત્ર લીધા પછી જેમાં ખીજો ભ્યપદેશ થતા નહાય તે યાવત્કથિત સામાયિક સયત કહેવાય છે. ઈરિક સામાયિક સયત આગળ જેએમાં મહાવ્રતાના આરેાપ થવાના હાય છે. એવે હાય છે એવા આ પહેલા અને છેલ્લા તીર્થંકરના સાધુ હાય છે. તથા યાવકૅથિતમાં સામાયિક યાત્ જીવ વિદ્યમાન હેાય છે. એવે આ સાધુ મધ્યમ તીર્થંકરાના અને મહાવિદેહમાં રહેનારા તીથ કરેાના સાધુ હાય છે.