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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ १०२ द्वितीयं वेदहारनिरूपणम् ३७३ सामायिकसयतत्वस्य व्यपदेशादिति । 'जइ सवेयए एवं जहा कसायकुसीले तहेवनिरवसेस' यदि सवेदको भवेत् एवं यथा कषायकुशीलस्तथैव निरवशेष ज्ञातव्यम् यदि सवेदको भवेत् त्तदा-स्त्रीवेदोऽपि भवेत् पुरुषवेदोऽपि भवेत् नपुंसकवेदोऽपि भवेत् अवेदस्तु क्षीणोपशान्तवेदइत्यर्थः । एवं छेदोवट्ठावणियसंनए वि' एवं सामा. यिकसंयतवदेव दोपस्थापनिकसंयतोऽपि सवेदकोऽपि अवेदकोऽपि भवेत् यदि सवेदकस्तदास्त्रीवदेको भवेदिति, नवमगुणस्थान के अवेदकोऽपि भवेत् छेदोपस्थापनीयसंयत इति । 'परिहारविसुद्धिकसंजओ जहा पुलाए' परिहारविशुद्धिक संयतो यथा पुलाका, पुलाकरदेव परिहारविशुद्धिकसंयतः पुरुषवदवेदको भवेत् वह सवेद भी होता है और अवेद भी होता है । 'जह सवेयए एवं जहा कसायकुसीले तहेव निरवसे सं' यदि वह सवेद-वेदसहित होता है तो इस सम्बन्ध में समस्त कथन कषायकुशील के कथन जैसा जानना चाहिये अर्थात् यदि वह वेदसहित होता है तो वह स्त्रीवेदवाला भी हो सकता है पुरुषवेद वाला भी हो सकता है और पुरुषनपुंसकवेवाला भी हो सकता है और यदि वह अवेद-वेद रहित है तो वह उपशान्तवेदवाला हो सकता है और क्षीण वेदवाला भी हो सकता है।
'एवं छेदोवठ्ठावणियसंजए वि' इसी प्रकार से छेदोपस्थापनिक संयत भी वेद सहित होता है और वेद रहित भी होता है ऐसा जानना चाहिये । यदि वह वेदसहित है तो वह तीनों वेदनाला हो सकता
और यदि वेदरहित है तो वह नौवें गुणस्थान में अवेदक भी होता है। 'परिहारविसुद्धिक संजओ जहा पुलाए' परिहारविशुद्धिक संयत નાખવાથી અવેદક કહેવાય છે. તેથી જ અહિયાં ઉત્તર વાક્યમાં પ્રભળી : स धु छ है-ते सवे ५५ डाय छे. मने मवे पाय छे...'
'जइ सवेयए एवं जहा कसायकुसीले तहेव निरवसेस' नेते सहવેદસહિત હોય તે તે સંબંધમાં સઘળું કથન કષાય કુશલના કથન પ્રમાણે સમજવું. જે તે સવેદ હોય છે તે સ્ત્રીવેદવાળા પણ હોય છે, અને પરષ *
દવાળા પણ હોય છે, તથા નપુંસક વેદવાળા પણ હોય છે. અને જે તે વેદ વિનાના હોય તે તે ઉપશાન્ત દવાળા હોઈ શકે છે. અને ક્ષીણ રેટ पाणाडश छे. 'एव छेदोवद्वावणियसजए वि' मेरी प्रमाणे होय. સ્થાપનીય સંયત પણ વેદસહિત હોય છે. અને વેદરહિત પણ હોય છે. તેમ સમજવું. જે તે વેદસહિત હોય તો તે ત્રણે વેદવાળા હોઈ શકે છે. અને જે सविताना डायत ते नवमा गुस्थानमा सवे पशु डाय छे. 'परिहार विसद्धिकसंजओ जहा पुलाए' ५.२७२ विशुद्ध संयतमा वनु थन सा :
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