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भगवती "गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'एगंमि संजलगलो होजना' एकस्मिन् संज्वलनलोमे भवेत् । 'अहक्खायसंजए जहा णियंठे" यथाख्यातसंयतो यथानिग्रन्था, कपायद्वारे यथाख्यातसंयतो निर्ग्रन्थवदेव ज्ञातव्यः, नो सकपायी भवेद किन्तु अपायी भवेतू यदि अकपायी भवेत्तदा किमुपशान्तकषायी भवेत् क्षीणकपायी वा भवेत् ? गोतम ! उपशान्तकपायी वा भवेत् क्षीणकपायी या भवेदिति । (१८) सू०४।।
'सुहमसंपरायसंजए पुच्छा' हे अदन्त । सूक्ष्मसंपराय संयत क्या कषाय सहित होता है ? अथवा कषाय रहित होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयामा सकसाई होज्जा, नो अकलाई होज्जा' हे गौतम ! यह कपाय सहित होता है कषाय रहित नहीं होता है। 'जइ सक्षलाई होज्जा लेणं मते ! हसु कसाएस्सु होज्जा' हे भदन्त ! यदि वह कषाय सहित होता है तो हे भदन्त ! वह कितनी कपायों वाला होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! एगमि संजलणलोभे होज्जा' हे गौतम ! वह सिर्फ एक संज्वलनलोभवाला ही होता है । 'अहकखायसंजए जया पियंठे' हे गौतम ! यथाख्यात संयत निग्रन्थ के जैसे ही कषाय द्वार में जानना चाहिये । तथा च यथाख्यात संयत निर्ग्रन्थ के जैसे अकषायी होता है-कषाय सहित नहीं होता है । अफषाची अवस्था में अथवा तो वह उपशान्त कषाय घाला होता है अथवा क्षीण कषाय वाला होता है सू०४॥
॥ १८ वां कषाय द्वार का कथन समाप्त ॥ 'सुहमसंपरायसंजए पुच्छा' ७ मावन सूक्ष्भस ५२सय सयत शुषाय સહિત હોય છે? અથવા કષાય વિનાના હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री गौतमकामी हे छ -'गोवमा! सकसाई होज्जा, नो अकसाई होज्जा' गीतम! ते ४पाय सहित डाय छ, उषाय विनाना हात नथी. 'जइ सकसाई होज्जा से णं भंते ! कइसु कसाएसु होज्जा' मान्ने त કષાય સહિત હોય છે, તે તે કેટલા કષાયોવાળા હોય છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ -'गोयमा ! एगंमि संजलणलोहे होज्जा' गौतम! am मे सवसन मा ४ छोय छे. 'अहक्खायसंजए जहा णियंठे' 3 गौतम । यथाज्यात सय ४५.यान समयमा नियन्य प्रमाणे સમજવા. અર્થાત્ યયાખ્યાત સંયત નિર્ગસ્થના કથન પ્રમાણે અકષાયી હોય છે. કષાય સહિત હોતા નથી. અકષાયી અવસ્થામાં તે ઉપશાંત કષાયવાળા હોય છે. અથવા ક્ષીણકષાય વાળા હોય છે. સૂ૦ ૪