________________
प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२५ उ. ६ सू०१२-३१ समुद्घातद्वानिरूपणम्
२३७
'गोमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ? ' तिन्नि समुग्धाया पन्नत्ता' त्रयः समुद्घाताः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा ' तद्यथा- 'वेषणासमुग्धार' वेदना समुद्घातः १, 'कसायसमुग्धाए' कपायसमुद्घातः, चारित्रवतां संज्वलनकपायोदयसंभवेन पायसमुदघातो भवतीति २ । 'मारणंतियसमुग्धाएं' मारणान्तिकसमुद्घातः, अत्र पुलाकस्य मरणाभावेऽपि मारणान्तिकसमुद्घातो न विरुद्ध समुद्घातानिवृत्तस्य कुशीलत्वपरिणामे सति मरणाभावात् इति । 'वउसस्लणं भंते ! पुच्छा' वकुशस्य खलु भदन्त ! कति समुद्घाताः प्रज्ञप्ता: ? इति पृच्छा - प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम | 'पंच समुग्धाया पन्नता' कितने समुद्घात होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोयना ! तिन्नि समुग्धाया पन्नत्ता' हे गौतम! पुलाक के तीन समुद्घात होते हैं । 'तं जहा' जैसे- 'वेषणासमुग्धाए, कसायसमुग्धाए, मारणंतिय समुग्धाए' वेदना समुद्घात, कषाय समुद्यात और मारणान्तिक समुद्घात, पुलाक के संज्वलन कषाय का उदय होता है इसलिये कषाय समुद्र्घात हो सकता है क्यों कि चारित्रवालो के संज्वलन कषाय के उदय होने से कषाय समुद्घात होता है । यद्यपि पुलाक का मरण नहीं होता है फिर भी यहां मारणान्तिक समुद्घात का कथन विरुद्ध नहीं पडता है। क्यों कि समुद्घात से निवृत्त होने के बाद कषायकुशीलता आदि के परिणाम के होने पर उसका मरण होता है ।
'बउसस्स णं भंते! पुच्छा' हे भदन्त ! बकुश के कितने समुद्घात होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोयमा ! पंच समुग्धाया पत्ता ' सभुद्घाती होय छे ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रलुश्री छे - 'गोयमा ! तिम्नि समुग्धाया पन्नत्ता' हे गौतम ! युसाउने त्रषु सभुद्घातो हाथ है. 'स' जहा' ते या प्रमाणे - 'वेयणासमुग्धाए, कसायसमुग्धा मारणंतियसमु'घाएं' वेहनासभुद्द्द्घात, उपायसमुद्घात, अने भारयान्ति समुधात पुसाउने સવલન કષાયના ઉદય થાય છે. તેથી કષયસમુદ્દાત થઈ શકે છે, કેમકે ચારિત્રવાળાને સજ્વલન કષાયના ઉદય થવાથી કષાય સમુદ્લાત થાય છે. જો કે પુલાકને મરશુ હોતુ નથી તે પશુ અહિયા મારણાન્તિક સમુદ્ઘાતનુ‘ કથન વિરૂદ્ધ પડતુ નથી. કેમકે-સમુદ્ઘાતથી નિવૃત્ત થયા પછી કષાય કુશીલ વિગેરેના પરિણામ થયા પછી તેનું મરણ થાય છે.
'बउसस्स णं भते ! पुच्छा' हे भगवन् मधुशोने ऐटसा समुद्घाती होय छे? आता उत्तरगां अनुश्री हे छे ! - 'गोयमा ! पंचस्रमुग्धाया पन्नत्ता' हे