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भगवती Modearer परिपूर्णा अष्टकर्मप्रकृतीरुदीरयति, 'छ उदीरेमाणे आउयचेयणिज्जवज्जाओ छ कम्मपगडीओ उदीरे' पट्कर्मप्रकृतीरुदीरयन् आयुष्कवेदमीयवर्णाः पट्टकर्मप्रकृतीरुदीरयति, पंच उदीरेमाणे आउयवे यणिज्जमोह णिज्ज - जाओ पंचकम्मपगडीओ उदीरेड' पञ्चकर्म प्रकृती रुदीरयन आयुष्कवेदनीयमोडनीयवर्जिताः पञ्चकर्मपकृतीरुदीरयतीति भावः । 'णियंटे णं पुच्छा' निर्ग्रन्थः खलु भदन्त ! [कवि कर्मप्रकृती रुदीरयतीति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा ' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'पंचविह उदीरए वा दुब्बिह उदीदए वा पञ्चविधकी उदीरणा करता है 'अट्ठ उदरेमाणे पडिपुन्नाओ अड्ड कम्मपगडीओ उंदीरेह' जब वह आठ कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है तो ज्ञाना थरणादिक आठ की आठ पूरी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है 'छउदीरेमाणे आउयवेयणिजयज्जाओ छ कम्मपगडीओ उदीरेह' जब यह छ प्रकृतियों की उदीरणा करता है तो आयु और वेदनीय कर्म प्रकृतियों को छोडकर छह कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है और जब यह पंचउदीरेमाणे आउयवेयणिज्ज मोहणिज्जबज्जाओ पंचकम्मपगडीओ उदीरेह' पांच कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है तब यह आयुष्क वेदनीय और मोहनीय कर्मप्रकृतियों को छोड़कर बाकी की पांच कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है ।
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'णियं णं पुच्छा' हे भदन्त ! निन्य कितनी कर्म प्रकृतियों की उदीरणा करता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते है- 'गोयमा ! पंचउदीरेमाणे पडिपुन्नाओं अट्ठ कम्मपगडीओ उदीरेइ' क्यारे ते माह अड्ड તિચેની ઉદીરણા કરે છે, તેા જ્ઞાનાવરશીય વિગેરે આઠે અ હૈં કર્યાં પ્રકૃતિચેાની हीरा रे छे. 'छ उदीरेमाणे आरयवेयणिजत्रजाओ छ कम्मपगडीओ उदीरे - જ્યારે તે છ કમ પ્રકૃતિચેાની ઉદીરણા કરે છે; ત્યારે તે આયુ અને વેદનીય એ એક પ્રકૃતિયાને છેડીને છ કમ કૃતિયાની ઉદીરણા કરે છે. અને क्यारे ते 'पंच उदीरेमाणे आउयवेय णिज्जमोह णिज्जवज्जाओ पंच कम्मपगडोओ उंदीरेइ' यांथ अभ्र अमृतियानी हीरा ४रे छे, त्यारे ते आयुष्य, वेहनीय અને મેાહનીય એ ત્રણ ક્રમ' પ્રકૃતિયાને છેાડીને બાકીની પાંચ કમાઁ પ્રકૃતિચાની ઉંદીરણા કરે છે,
- 'जियठे णं पुच्छा' हे भगवन् निर्थन्य टसी उर्भ श्रधृतियोगी मंडी या ४२ छे ? या प्रश्नना उत्तरमा अलुश्री हे छे - गोयमा ! पंचविह उदीरए वा