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किन्तु यह निश्चित है कि प्राचीन भारतीय आर्य भाषा - काल के बाद ही स्वराघात के चिन्ह को लगाने का प्रयोग उठ गया था । जेकोबी और गायगर का मत है कि पालि में स्वराघात का वही रूप था, जो संस्कृत में । यह तथ्य नीचे लिखे परिवर्तनों से स्पष्ट होता है ।
(१) तीन-चार अक्षरों के शब्द में, जिसमें संस्कृत के साक्ष्य पर प्रथम अक्षर में स्वराघात होता था, स्वराघात वाले अक्षर के बाद के अक्षर में अर्थात् दूसरे अक्षर में पालि में स्वर-परिवर्तन पाया जाता है ।
(अ) स्वराघात वाले अक्षर के बाद अ का इ हो जाता है
चन्द्रमा
चर्म
परम
पुत्रमान्
मध्यम
अहंकार
( आ ) स्वराघात वाले अक्षर के बाद अ का उ भी हो जाता है-
नवति
नवुनि
प्रावरण
पापुरण
सम्मति
सम्मुति
चन्दिमा
चरिम
परिम
पुत्तिमा
मज्झिम
अहंकार
(इ) कभी-कभी स्वराघात वाले अक्षर के बाद इ का उ और उ का इ हो
जाता है-
राजिल
गैरिक
प्रसित
मृदुता
(२) स्वराघात वाले अक्षर के बाद आने पर अनुदात्त लघु स्वर कभी-कभी लुप्त भी कर दिये जाते हैं-
उदक
अगार
राजुल
गेरुक
पसुत
मुदिता ( मुदुता भी )
ओक
अग्ग