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कोप्टक नं०७
प्रगत गुण स्थान
चौंतीस स्थान दर्शन क! स्थान | सामान्य ।
पर्याप्त
| पालाप
। अपर्याय
नाना जावों की अपेक्षा
एक जीव की अपेक्षा नाना ममय में
एक जीब की अपेक्षा एक समय में
१ मुगा स्पान
सूचना
२ जोवसमाज
१अप्रमत्त गुण स्थान बोन.१५ देखो १ मंजी पंचन्द्रिय पर्याप्ति अवस्था को नं०१८ देखो
६ का भंग को.नं. १८ देखो
३ पर्याप्ति
को० नं०१ देखो | ४ प्राण
को नं०१ देखा । ५ मंगा
भय, मैथुन, परिग्रह ६ गति ७ इन्द्रिय जाति
१ भंग ६ का अंग
१ भंग १० का मंग
१ भंग ३ का भंग
१० का मंच को न.१८ के समान
इस प्रमत्त गुण स्थान | में विग्रह गति और मौदारिक मित्र कापयोप यात्रिय मिथ योग योग की भवस्थायें नहीं होती इसलिये यहां अपर्याप्त अवस्था नहीं
१ भंग ६ का भंग
१ मंन १० का भंग
१ भंग 2 का भंग
(देखो गो० क. गा. ३१२ से.१६)
३ का भंग को.नं.१% इंडो
१ मनुष्य गति जानना १पनन्द्रिय जाति जानना
को० नं. १८ देयो १त्रगकाम जानना
को नः १८ देखो
८ काय १ योग
चांनं०५ देखो
का भंग को००१८ देखो
१ गति का भग जानना
।
१योग के भंग में ये कोई १योग जानता के मंगों पे में कोई १ देद जानना
१ भंग ३ का मंग
न सक, स्त्री, पुरूष वेद
३ का भंग की नं० १६ देखो
११ कवाय
संज्वलन कषाय ४ नवनोकषाय
१३ का भंन को.नं.१८ के समान
|४-५-६ के अंगों में से ४-५-६ के भंग जानना कोई मंग जानना