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कोष्टक नं० १६
नरक गति में
चोटीस स्थान दर्शन ___१ । २ ।
यानादिचय धर्म ध्यान ?
गैर ध्यान ४, प्राज्ञाजोरकर ६ का भंग
वित्रय धर्भ ध्यान जानना
ये भंग (21 ४ो गृगग० मे
व गुमा० में १० के भंग में | १० का भंग-ऊपर के १० का भग | से कोई १ च्यान के भंग में भपाय विचय!
जानना धर्म ध्यान १ जोड़कर १०
का भंग जानना २२ प्राव
YE सारं भंग १ भंग
सारे भंग | पा० मियकाय योग १, ।। वै० मिथकाय योग १ अपने अगन स्थान सारे मंग में से | वचनयोग ४, मनोयोग | अपने अपने स्थान । सारे भग में से मा० काय योग, कार्माकाय योग १ के सारे भंग | कोई १ मग । ४, 4. काय योग १, के सारे मंग कोई १ मंग प्रो. मिथकाय योग १, ' ये घटाकर (४६) जानना
जानता ये घटाकर (४२) | जानना
जानना और काय योग १ ४६-४४-४० के भंग
४२-१३ केभंग स्त्री-पुरुष वंद २ ये ६ (२) १ले गुगण में
हले गूगा में ११ से १८ तक (१) १ले गुगण में १ले गुण में ११ से १८ तक घटाकर (५१)
१६ का भंग
। ११ से १८ तक ! के भंगों में से | ४२ का भंग-पर्याप्त के ११ से १५ तक के के भगों में से मिश्यास्य ५, अविरत | के मंग-को.नं. | कोई एक मंग | ४६ के भंग में में योग । भंग-को-नं. कोई भंग (हिंसक इन्द्रिय विषय ६ | १% देखो जानना
घटाकर १५ देखो
जानना हिम्य ६) १२, कषाय २३
40 मिश्रकाय योग १ (स्त्री-पुरुष वेद घटाकर)
कारणकाय योग १ वचनयोग ।, मनोयोग ४,
ये २ जोष्टकर ४२ का ! 4. काय योग १, ये ४६
भंग जानना का भग
(२) ४थे गुम्प० में ४थे गुण में से १६ तक (२) सासादन गुण. में । २रे गुण में १ मे १७ तक ३३ का मंग-कार के | से १६ तक के । के अंगों में से
४४ का भंग-ऊपर के ४ १० से १७ तक के के मंगों में से | ४२ के भंग में में भंग-कोनं० । कोई भंग के भंग में से मिथ्यात्व ५ | भंग-को० नं कोई १ भंग | मिथ्यात्व ५, अनन्ता- १८ देखो
जानना घटाकर ४४ का भंग ८ देखो जानना नुबंधी कषाय ४, ये जानना
घटाफर २२ का भंग (३) ३रे ४ गुणा में ३रे ये गुण में | ६ से १६ तक जानना
४० का भंग-ऊपर के ४४ से १६ तक के के भंगों में से