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। २७४ ) कोष्टक नं० ३६
चौंतीस स्थान दर्शन
अनुभय वचनयोग में
परन्तु यहाँ एक अनुभय वचनयोग हो जानना । को० नं.१८ देखो ! १भंग जानना
कषाय २५, अनुभव वचन योग १ : नना २३ भाव
की नं०२६ देखी
' ।
५३ चागें गलियों में हरक में को० नं. के समान भंग जानना
सारे भंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना को नं०१८ देखो
भंग । अपने अपने स्थान के हरेक भंग में से कोई भंग जानना
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२६
अवगाहना-को० नं. ३५ के समान जानना । बम प्रकृतियां-की० नं०२६ समान जानना। उदय प्रकृतियां-११२ उदययोग्य १२२ प्र० में से एकेन्द्रिम जाति १, प्रानुपूर्वी ४, भातप १, साधारण १. मूक्ष्म १, स्थावर १, अपर्याप्त १,
ये १० घटाकर ११२ प्र. का उदय जानना । सत्व प्रकृतियां-को० नं० २६ के समान जानना । संख्या असंख्यात जानना । क्षेत्र-लोक का असंख्यातवा भाम प्रमाण जानना । स्पर्शन-लोक का संस्थातवां भाग, अर्थात् ८ राजु जानना, सर्व लोक को० नं. २६ के समान जानना। काल--- नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना, एक जीव की अपेक्षा एक समय से अंतमुहर्त तक जानना । अन्तर-माना जीमों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं एक जीव की अपेक्षा एक अंतहत से असंख्यात पुदमन परावर्तन काल तक मनुभय वचन
प्राप्त नहीं होता। जाति (योनि)-३२ लास योनि जानना, (दौन्द्रिय २ लास. श्रीन्द्रिय २ लाख, चतुरिन्द्रिय २ लाख, पन्द्रिय पशु नियंच ४ लाख, नारकी ४
लास, देव ४ लाता, मनुष्य १४ लाख ये ३२ लाख योनि जानना । कुल -१३२॥ लाख कोटिफुल बागला, (दीन्द्रिय ७ श्रीन्द्रिय ८, पतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय पशु तिर्थप ४३॥ नारकी २५, स्वर्ग के देव २६, मनुष्य
१४ लाख कोटिकुल से १३२॥ लाख कोटिकुल जानना।