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अवमाहना- को० नं०१७-१८-१९ देखा। बंध प्रकृतियां - १२० पर्याप्त अवस्था में जानना और नित्यपर्याप्तक अवस्था में १०७ जानना, बन्ध योग्य १२० प्रकृतियों में से मायु ४,
नरकटिक २, देवद्विक २, क्रियिकदिक २, माहारकटिक २, तीर्थकर प्र०ये १३ पटाकर १०७ जानना । सवय प्रकृतियां-१०५ को न०४७ के १०७ प्र. में से माहारकदिक २, पुरुष वेद १ ये ३ घटाकर और स्त्री वेद १ जोड़कर १०५ प्रका
उदय जानना, सत्य प्रकृतियां-१४८ को० नं. २६ के समान जानना। संख्या-असंख्यात जानना। क्षेत्र-लोक का असंख्यातवां माग जानना । स्पर्शन-लोक का प्रसंख्यातमा भाग जानना, विशेष भंग को. नं. ४७ में देखो। काल नाना जीवों को अपेक्षा सर्वकाल जानना, एक जीव की अपेक्षा एक समय से शतपृथकाव पत्य तक स्त्री वेद ही बनता रहे। अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं, एक जीव की अपेक्षा क्षत्रभव से असंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक स्त्री पर्याय न धारण
जाति (योनि)-२२ लाख योनि जानना (को० नं० ४७ देखो) गुल-१३॥ लाख कोटिकुल जानना (को० नं. ४७ देखो)
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