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चौंतीस स्थान दर्शन
कोष्टक नं.?
अनन्तांनुबंधी '४ कषायों में
२
.
दखी
(२) नियंच गति मे को नं. १७ देयो । काम०१७ ) नियंत्र गनि में कोन०१७ देखा | कोन०१७ -१३.के भंग
देखो को न०१७ देखो
को० नं. :देवी । (३) मनुष्य पति में | मारे भंग मारे भंग (३) मनुष्य गति में सारे मग "वेद १.२ के भंग को नं०१८ कोलन.१ देतो की न०१- ३-२ व मंग को नं. को.नं. १- देखो | को.नं.१५ ! देखा ।१८ देखो
देखा (४) देवगनि में | सार मंग मारे भग ८) देवगति में
सारे भग १वेद १ के भंग को न०१६ को नं. १६ देखो | को० नं१६ । २-१ के भंग को नं० को नं. १६ ददा | को० न०१६ दिनी १६ देखो
देखो ११ कषाय
२२ । सारे भंग . सारं भंग
२
सारे मंग १ भंग अनन्तानुबंधी कषाय (१) नरक गति में
को ०१६ देखो | को नं. १६ । (१) नरक गति में को नं १६ देखी | को.नं.१६ जिम कपाय का विवार ०० का भंग-को० .
२०का भग-की नं० ।
देखो करो मौ०१ कषाय, १६ के २३ के भंग में से
१. के २३ के रंग में मे अप्रत्याख्यान कषाय ४ अनन्तानुबंधो कषाय जिस
। पर्याप्तवत अनन्तानृबंधी प्रत्याख्यान कपाय का विचार करो उसको
कगाय ३ घटाकर २० का संज्वलन कषाय, छोड़कर शेष तीन कपाय
| भंग जानना हास्यादि नव नो कषाय घटाकर २० का मंग ये (२२)
जानना (२) तियंच गति में सारे भंग सारे भग । (२) नियंन गनि में
सारे मंग १ मग २२.२०-२२-२६.२.क कोल नं.१७ देखा ' को० नं. १७ २२-२०.-२२-२०.१२ को.नं.१७ देतो | को० नं०१७ मंग-को० नं०१३ के २५
.२१ के भंग-कोनर २३२५-२५-२४ के हरेक
१७ के २५-२३-२५.२५भंग में ऊपर के समान
२३-२५-२४ के हरेक भंग अनन्नानुबंधो कपाय ३
। में में पर्याप्तवन अन्तानुघटाकर २२-२०-२२-२२
। बंधी कषाय घटाकर २१ के अंग मानना
२२-२०-२२-२२-२०-२२
| २१ के मंग जानना । (३) मनुष्य गति में
सारे मंग | सारे भंग । (३) मनुष्य गति में सारे मंग १ भंग २२-२१ के भंग-को.नं.को०१७ देसो । को.नं.१८२२-१के अंग-को को० नं.१८ देखो को.नं०१८ के २५-२४ के हरेक
नं०१८के २५-२४ के।
देना
" । देखो
[ देखो