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कर्मों के मूलोत्तर प्रकृतिया की अवस्थाओं के मादिक कुछ विशेषा
विवरण
१. मूल प्रकृति : है- कर्म सामान्य से ८ प्रकार का चारित्रमोबनीय के -कषायवेदनीय और नोकषायया १४८ प्रकार के होते हैं और असख्यात लोकप्रमाण वेदनीय इस प्रकार दो भेद जानना । भेद भी होते हैं। घाति और अधाति ऐसी उनको अलग- कवायवेवनीय के-१६ भेद हैं-(अनंतानुबंधीअलग संज्ञा है. ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय मोर कोध-मान-माया-सोम ४, पप्रत्याख्यान-क्रोध-मानअन्तराय ये चार घातिया कम हैं, कारण ये जीव के माया-लोभ ४, प्रत्याख्यान-क्रोध-मान-माया-लोभ ४, गुणों का घात करते हैं और प्रायू, नाम, गोत्र और संज्वलन-मान-याया-लोभ । ये १६ वेदनीय ये चारों कर्म जीव के गुणों का घात नहीं करते, नोकषायवेवनीय के ६ प्रकार है-(हास्य, रति, इसलिये वे प्रघाति कर्म कहलाते हैं, इस प्रकार ये कर्मों की प्रारति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुरुषवेद, स्त्रीधेद, नपु सकवेद आठ मूल प्रकृतियां हैं। उनका क्रम । ज्ञानावरणीय, ये ६) । २ दर्शनावरणीय, ३ वेदनीय, ४ मोहनीय, ५ पायु, इस प्रकार मोहनीय कर्म के बंध की अपेक्षा, दर्शन ६ नाम, ७ गोत्र, ८ घन्तराय इस प्रकार-जानना (देखो मोहनीय के एक मिथ्यात्वं प्रकृति और चारित्र माहनीय गो० क० गा० ७---8)
के २५ प्रकृति मिलकर २६ प्रकृति जानना । २. उत्तर प्रकृति १४८ है—शानावरणीय के ५, (५) प्राय कम के । भेव हैं- (नरकायु १, तिर्यंचायु दर्शनावरणीय के है, बेदनीय के २, मोहनीय के २८, १, मनुष्यायु १, देवायु · ये ४) आयु के , नाम कर्म के ३, गोव कर्म के २. अन्त
(६) नाम कम के ५५ है-पिंह और प्रपिंड की अपेक्षा ५ ये सब मिलकर १४८ उत्तर प्रकृतियां जानना देखो ४२ प्रकार जानना, पिंड प्रकृति १४ हैं, इनके उत्तर भेद मो० के० गा. २२)।
६५ जानना, गति ४, जाति ५, शरीर ५, बंधन ५, सपात
५, संस्थान ६, अंगोपांग ३, संहनन ६, बादि ५, गंध .. बंध योग्य प्रकृतियां १२० है(१) मानायरणीय ५ (मति-श्रुत-अवधि-मनः
२, रस ५, स्पशं ६, भानुपूषों ४, विहायोगति २ ये
। पर्यय-केवल ज्ञानावरणीय ये पांच)
अपि प्रकृति २८ होते है-(१) अगुरुलघु (२) उप(२) शनावरणीय । (अपक्षु दर्शन, चक्षुदर्शन, घात (३) परधात (४) उच्छ् वास (५) आतप अवधि दर्शन, केवल दर्शनावरणीय और स्थानगृद्धि, (६. उद्योत, (७) घस (८) स्थावर (8) दादर (0) निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रथला निद्रा, प्रचला १)
सूक्ष्म (११) पर्याप्त (१२) अपर्याप्त (१३) प्रत्येक शरीर (३) वेदनीय के २ हैं [सातावेदनीय (पुण्य), प्रसाता. (१४) साधारण शरीर ... स्थिर (१६) अस्थिर वेदनीय (पाप) ये २]
(१७) शुभ (१८) अशुभ (१६) सुभग (२०) दुर्भग (४) मोहनीय के-दर्शनमोहनीय और चारित्रमोह- (२१) सुस्वर (२२) दुस्वर (२३) प्रादेय (२४) यनादेय नीय ऐसे दो प्रकार हैं. दर्शनमोहनीम का बंध की अपेक्षा (२५) यशः कीर्ति (२६) अयशः कीर्ति (२७) निर्माण से 'मिथ्यास्व' यह एक ही प्रकार जानना, उदय और .२८) तीर्थकर ये २८ जानना । सत्व की अपेक्षा से मिथ्यात्व, सम्यङ्ग मिथ्यात्व, सम्य- इस प्रकार ६५+२८ = ६३ नामकर्म के प्रकृतियों क्व प्रकृति ऐसे तीन प्रकार जानना।
में निम्नलिखित २६ प्रकृतियों की बंध में गिनती नहीं