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१नास्ति४७ जीव, मानव, संवर, निर्जरा.बन्ध मोक्ष न जानना । जैसे कि 'जीव' अस्तिहप है ऐसा कौन ।
-७४२ मियति, काल-१४ ये भेद नास्तिकपने में जानता है। तथा नास्ति अथवा दोनों, वा बाकी तीन भंग जानना । पहले के ७० भौर मे १४ सब मिलकर अश्यिा - मिली हुई इस तरह ७ भंगों से कौन जीव को जानता है। वादियों के ८४ भेद होते हैं। (देखो गो० के० गा इस प्रकार नव पदार्थों का ७ भंग से (अस्ति. नास्ति. १८४-८८५)
अस्ति-नास्ति, प्रवक्तव्य, अस्तिप्रवक्तव्य नास्ति प्रवक्तव्य
अस्ति नास्ति श्रवक्तव्य, ये ७ गुण करने पर ७XE -६३ (६) प्रशानबाद के ६७ भेद बताते हैं
जीवादि नव पदार्थों में से एक एक का सप्त भंग से भेद होते हैं(१) जीवादि नवपदार्थ अस्तिरूप है
ऐसा कौन जानता है ? =& (२) , "
नास्तिरूप है मस्ति नास्ति रूप है प्रवक्तव्य रूप है अम्ति प्रवक्तव्य है नास्ति प्रवक्तव्य है अस्ति नास्ति प्रवक्तव्य है
(३)
१. शुद्ध पदार्थ X४ अस्ति, नास्ति, मस्ति नास्ति, प्रवक्तव्य=४ {१) शुद्ध पदार्थ अस्ति रूप है
ऐसे कौन जानता है ? (२)
नास्ति रूप है अस्ति नास्ति रूप है अवक्तव्य रूप है
इस प्रकार पूर्वाक्त ६३ और ये ४ सब मिलकर अन्य भी कुछ एकांसवाबों को कहते हैं। प्रज्ञानवाद के ६७ मेद जानता। (देखो गो० क. मा० पौषवाद-जो पालस्यकर सहित हो तथा उद्यम ८८६-८८७)।
करने में उत्साह रहित हो। वह कुछ भी फल नहीं भोग
सकता। जैसे स्तनों का दूध पीना बिना पुरुषार्थ के कभी (१०) वैयिवार के ३२ मे कहते है
नहीं बन सकता। इसी प्रकार पुरुषार्थ से ही सब कार्य देव, राजा, ज्ञानी, यति, बृद्ध, बालक, माता, पिता ।
की सिद्धि होती है। ऐसा मानमा पौरुषवाद है। (देखो इन पाठों का मन, वचन, काय पोर दान इन चारों से ,
गोक० गा० ८६०)। विनय करना इस प्रकार वैनयिकवाद के 4X४-३२
(२) देवनार-मैं केवल देव (भाग्य को ही उत्तम भेद होते हैं। ये विनयवादी गण, अवगुण की परीक्षा
मानता है। निरक पुरुषार्थ को धिक्कार हो। देखो कि किये बिना विनय से ही सिद्धि मानते हैं। (देखो गो.
किले के समान ऊंचा जो वह करणं नामा राजा सो युद्ध क. गा० ८५८)।
में मारा गया 1 ऐसा देववाद है। देव से ही सर्वसिद्धि इस प्रकार स्वच्छंद अर्थात अपने मनमाना है। मानी है। देखो गोः क. गा० ८६१)। श्रद्धान जिनका ऐसे पुरुषों के ये ३६३ भेद रूप पाखण्ड (३)संयोगवाद-यथार्थ ज्ञानी संयोग से ही कार्य कल्पना की है।
सिद्धि मानते हैं। क्योंकि जैसे एक पहिये से रथ चल नहीं