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को नं. १७ देख
८ (२) (तिर्थंचमति में को नं. १७ देखो यहां ४ थे और ५ वें कालम के ? भंग और १ ज्ञान को पंत्रित (२) तिर्थन गति में के सामन आना चाहिये था परन्तु वैसा न होकर उस पंक्तिके ऊपर के पंक्ति में रख दिया है यह गलत है । इसी तरह नीचे के पंक्ति
देखो
(३) मनुष्यगति में ( ४ ) देवगति में इन में भी सारेभंग और १ ज्ञान का पंक्तिको एक पंक्ति ऊपर रख दिया है इस गलती को सुधार लेना चाहिये अर्थात तियंच गति के सामने १ भंग १ ज्ञान और मनुष्य गतिके सामने सारे मंग १ ज्ञान देवगति सामने सारेमंग १ शान इस प्रकार समझकर पहा जाय इस तरह और भी अनेक जगह की गलतियोंको सामने समझकर पढ़ना चाहिये.
शुद्धि - 1
नंबर ( ३ )
इस पुस्तक में अनेक जगह में मंग के अनुस्वार छूटकर भंग ऐसा छप गया हूं इसलिये यहां सूथ्य देकर सुधार कर लेना चाहिये इसी तरह और भी बंध, संख्या, संज्ञा, संज्ञी, संयम आदि शब्दों के ऊपर का शून्य जहा जहां नहीं हो यहां शून्य देकर सुधार करके पढ़ा जाय.
शुद्धिइ-पत्र नंबर [४]
पृष्टांक क्रमांक
२
४
४
७
१५
१५
૧૭
१८
१९
२१
२२
२४
२४
१
१२
१२
२६
२६
२६ क
२८
२८
२८
२२
१९
६
२१
७
१०
१९
19
t
२
२०
v
१
१३
१५
अशुद्ध
१ गुणस्थान १४
( कालम ३ में ) ( १७ ) सभ्यवस्थ
(,,)
( कालम १ में ) नामकाय
(,,)
व असत्य
( कालम २ में ) तिद्यच
()
(..)
चदुरिन्द्रियजन्य
९७
सोमव
t, 1
( कालम १ में ) श्रद्धाल
२१ प्रकृतियों के
(का. २ में )
( का. ५ में) अगुणस्थान
(,,)
अवसभास
( का ३ में ) सम्यक्ष मिथ्या स्व
क पृष्टसंख्या- [ २५ ]
( कॉलम ६ में) असंज्ञी
[कों] ६ में ) २ के मंग
(कॉ, ७ में) ६-७-८-९ के अंग
(काँ
७ में) ७-८-९ के मंग
शुद्र
१ गुणस्थान १४+१
[ १७) सम्यक्त्व - ६
(६) क्षायिक सम्यक्रयनामकर्म
न असत्य तियंच
चक्षुरिन्द्रियजन्य
१७
सयोगकेवली
श्रद्धान
२५ प्रकृतियों के
अतीतगुणस्थान अतीतजीवसमास
मिथ्यात्व
( २६ क )
संजी
१-२ के भंग
७-८ - ९ के मंग
६-७-८-९ के मंग