Book Title: Chautis Sthan Darshan
Author(s): Aadisagarmuni
Publisher: Ulfatrayji Jain Haryana

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Page 873
________________ एक पंक्ति पशुवसा शुद्धता ७७१ ४७२ ५ ७७१ १८ ७५२ ३ ७५४१ ७५४६ ७५४१. निषेकाची १ले रकाने में पित्या २ रे रकाने ६० १ ले रकाने में कली घान , १. स्व रे काने में उपय ५७ उत्तर मामब के का.२ में ३ का.में आलारक निषकोंको तित्वा ६४० कदली घान १२ स्वर्ग उदय १ आसन के ५७ मर भेद के आहारक काययोग आधारक मिश्रकायाग माव प्रत्यनीक प अंतराय से दुसरे को जाने के भाव १जीवश्व कोई आरार्य मिद्भगति में क्षाविकमात्र मत है उन २६ भेदों को ७७६ ३. ' मागद ७. १ १ का २ में प्रस्यन की ७७६ ३ , से ७७८ २ होने हुए उत्पन्न हुये ७७८२ जावे भाव ७८२ ८ को में . ७८२ सूचना-कोई आचार्य क्षायिक भाव ७८३ २ १ले रकाने में मत है ३३ गेदो को ७८३ : १ले रकाने में ४४८ ७८३ १५ भवरुप . ७८३ १५ २ रे रकाने में ८७८ ७८३१८ १८ वेद ७८३ २१ ७८३ २३ नियसो ७० ३२ दूसरे स्वाने में १४ ७८४ १ १ले रकाने में जोब आसव ७८४ २ . नास्तिकपन भावप १८. भेद अजीवं नियती रमाव. १४ स्वभाव की जीव, अजीर, आयव मास्तिपन सप्तमंग से भेद होते है सप्तभंगसे इसके आगेका विषय न जानना जैसे कि 'जीव' इत्यादी यही ७८४ पृष्ठ के २ रे रकाने के (एक से ७ पंक्ति के और होते है यहां तक समझना । ७८५ २ ३ रे. रकाने में दोनो बानाकी तीन दोनो वा अपवतव्य वा बाकी तीन

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