Book Title: Chautis Sthan Darshan
Author(s): Aadisagarmuni
Publisher: Ulfatrayji Jain Haryana

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Page 856
________________ ८२० 4 पंक्ति अपुरता शुद्धता सदा-देनानि में पीय प्रयस्था में अशुभ लेश्या नहीं होते । नरक और कर्मभूमि की अपेक्षा मनुष्यगति में। १ नरक देवति में और कर्मभूमि की अपेक्षा मनष्यगति में। १६-१९-१८ के नीचे ५३० २ ३ मा ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा १ करक मनुष्म ५३० २३ का. ६ में कर्मममि की अपेक्षा नरक मन व्य देवमति ५३० ६ का, ६ में १६-१८-१९ ५२ १२ १३ का. ३ में कर्मभूमि की . अपेक्षा १ नरक मनध्य देवति ५३० १२१३ का ६ में कमममि की अपेक्षा १ नरक मनुप्य ५३. १६ का, ६ में १६-१८-१९ ५३० २६ २७ का ३ में कर्मभूमि को अपक्षा १ नरक मनुष्य गति में। ५३० २६ २७ का.६ में कर्मभूमि की अपेक्षा १नरक मनुष्य देवगति देवति । का.६ में १६-१८-१९ ५३१ ५ का ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा १ नरक और कर्म भूमि की अपेक्षा मनुष्यगति में। १ नरक देवगति में और कर्मभूमि की अपेक्षा मनुष्वगति १६-१९-१८ १ नरक और कम ममि की अपेक्षा मनुष्यसि में नरक देवगति में और कमभूमि की अपेक्षा मनष्यति १६-१९-१८ इस पंक्ति को इसके नीचे ८-९ के बीच पढा जाय 1 का. ३ में कर्मममि की अपेक्षा इस पंक्तिको इसके नीचे १९-२० पंक्ति के बीच पढ़ा जाय । का २ में ४ का ३ में कममि की अपेक्षा ५३२ २ इस पक्ति की इसके नीचे ५-६ पंक्ति के बीच पढा जाय । ५३२ २७ का ६ में २-२ ५३३१६-१७ का, ३ में कमभूमि की अपेक्षा इतना पढा जाय । ५३४ २-३ ५३४ २-३ का. ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा १ नरक और कर्म भूमि की १परक मनुष्य अपेक्षा मनुष्य । का, में कर्मभूमि की १नरक देवगति में और अपेक्षा १ नरेक मना कर्मभूमि की अपेक्षा देवप्ति मनुष्यगति ।

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