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वापर:-दस कोडाकोसी पल्य को सागर कहते है स्थितिबंधावसापस्थान-जिस कषायके परिणाम
सातावेदनीय-जो उदय में आकर देवादितिमें रो स्थिति बंध पडता है उस कपाय परिणामों के स्थान जीवको शारीरिक तथा मानसिक स्खों की प्राप्तिरूप को जानना (गा २५६) साताका देवति'-भोग-करावे, अथवा 'वेधतेअनेन । जिसके द्वारा जीव उन गुस्खोंको मोगबह सातावदनीय स्वमुखोदय-कर्म प्रकृति अपने स्वरूपमें उदय कर्म है (गा ३३ देखो)
होने को कहते हैं.
स्पर्शचतुष्क-वर्ष चतुक शब्द देखो. साविषदंगलद्रव्य- यह जीव समय समयप्रति
संज्वलन जिसने उदयमे मंयम 'म' एकहा होकर समयबद्ध प्रमाण परमाणु को ग्रहणकर कमरूप परिणमाता है उनमें किसी ममय तो पहले ग्रहण किय
'अलति' प्रकार करे, अर्थात जिसके उदयसे कषाय जो व्यरुष परमाणु का ग्रहण करता है उस व्य को
अंशसे मिला सा संयम रहे, कषाय रहित निर्मक
यथाख्यात संयम न हो सकेग संपलन कषाय कहते सादिपुद्गल द्रष्य जानना. (गा. ८० देखो)
है.(गा ३३ देखो ) सादिबंध-विवक्षित बंधका बीच में छुटकर पून!
साषम-वस्तुको उत्पत्तिके निमितको कहते है. बोध होता है वह साबिंध है . (गा ८. देखो)
सुरषदक-दंवर्गात, देवमस्यानपूयं, वकिमिक
अंगोपांग, वैकियिकांधन, वक्रियिक संघात ये ६ स्तब-जिसमें सर्वांग संबंधी अर्थ विस्तार सहित।
से जानना, अपना संक्षेपतासे कहा जाय से शास्त्र को स्तव कहति ।
सूक्ष्मत्रय-गूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण ये ३ जानना
क्षयवेवा-अपकर्षणके काल को क्षयदेवा जानना स्तुति-जिसमें एक अंग (वंश) का अर्थ विस्तारसे अमवा संमेसे हो उस शास्त्र को सति कहते है. (गा, ४४५ देखो) (मा. ८८ देखो)
क्षद्रभव. एकश्वासक १८ वें भाग इतना आयु सपानगद्धि-इस कर्म के उदय से उठाय। हवा
. रहने को भुभव जानना.
क्षेप-मिलान करना या जोडना. मी सोताही रहे, उस नींद ही अनेक कार्य करे तथा कुछ गोले भी परंतु सावधानी न होय, (गा. २३देखो)
साघु स्तुति स्थान-मंग शब्द देखो.
शीतरितू जोर अंगसब ही सकोर. तहां तन को स्पिति-वस्तुकी कालमर्यादा को स्थिति कहते हैं. न मोर नदी धोरें 1
स्थितिबंध-आरमाके साथ कर्मोके रहनेकी मर्यादा को जानना.
धीर जखरे जेठ की कोरें, जहां अंडा छो
पण पंडी छांह लोरं ॥ स्थावरचतुष्क-स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, अपर्याप्त ये जानना
गिरिकोरता वे घरें घोर घन घोर बटा च?
और जोर जयों ज्यों। स्थावरवाशक-स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, अपर्याप्त अस्थिर, अशुभ, दुभंग, दुःस्वर, अनादेय, अयश- चमत हिलोरें क्यों त्यों फोर बलये अरे तन नेह कीति में १. मानना.
तोर परमारथ सो !!