Book Title: Chautis Sthan Darshan
Author(s): Aadisagarmuni
Publisher: Ulfatrayji Jain Haryana

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Page 816
________________ ६२. सर्व एक ना हो प्रहख जिनमें पाया जाता है ऐसे जो एकांत मत है ३३ मेवों को कहते हैं(१) कियावादियों के १८० (२) मावियों के ४ (३ अज्ञानवादियों ६७ ( ४ ) बैन पिकवादियों के ३२ । इस प्रकार सब मिलकर २६३ जानना, (देखो भेद गो० क० गा० ८७६) | ( ७८३ { (१यों के मूल कहते हैं १ ले 'अस्ति' X ४ 'श्रापसे', 'परमं', नित्यपने से', अनित्यपने X- जीव, पीव, पुण्य, पाप, श्रासव संवर, निर्जरा, बन्ध मोक्ष ३६४५ काल, ईश्वर आत्मा नियति स्वभाव १०० (२) १ अस्ति, ४ आपसे, परसे, नित्यपनेकर, निरमपनेकर, इन पांचों का तथा मरपदार्थ इन कुल १४ का अर्थ -- . है | २. जीवादि नये पदार्थ नित्यनेकर 'अस्ति' है ४. जीवादि नव पदार्थ नित्यपनेकर 'पति' है। 1 १. जीवादि नव पदार्थ द्रव्य, क्षेत्र, काल, भवरूप स्थचतुष्टयसे 'पाप' (स्वतः) 'प्ररित' है। - है ऊपर जो (वाया ९७८ देखी ) एकांतमत के ३६ भेद दिखलाया है। उनको काल, ईश्वर, मात्मा नियति और २. जीवादि न पदार्थ परचतुष्टय से परत:' ( परसे) स्वभाव इन पांचों को लगाकर गणना करने से क्रियावाद के १६x४-१० वेद होते हैं। (देखो गो० क० ग्रा० ८७६ से ८६३) । (=) सक्रियावाद =& ક્ (३) कालवाद - काल ही सब को उत्पन्न करता है। और काल ही सबका नाश करता है, सोते हुए प्राणियों में काल ही जागता है. ऐसे काल के अंचना (उगने को) कने को कौन समर्थ हो सकता है ? अर्थात् कोई नहीं । इस प्रकार काल से ही सबको मानना यह कालवाद का धर्म है (४) वादात्म ज्ञानरहित है. प्रनाथ है प्रर्थात् कुछ भी नहीं कर सकता। उस मात्मा का सुखदु:ख, स्वयं तथा नरव में गमन वगैरह सब ईश्वरकर किया हुआ होता है ऐ ईश्वरका किया सब कार्य मानना ईश्वरवाद का अर्थ है । (५) श्रात्मवाद - ससार में एक ही महान् श्रात्मा है वही पुरुष है, यही देव है मोर वह सपने व्यापक है। सर्वा गमने से भगम्य (छुपा हुआ है, चेतना सहित है. निर्गुण है और उत्कृष्ट है । इा तरह आत्मस्वरूप से ही सबको मानना श्रात्मवाद का श्रयं है । (६)) नियतिवाद जो जिस समय जिससे जैसे जिसके नियम से होता है वह उस समय तसे तेसे उसके ही होता है। ऐसा नियम से ही सब वस्तु को मानना उसे । नितिवाद कहते है । (७, स्वभाववाद कांटे कं मादि लेकर जो ती (चुभने वाली वस्तु है उनके लोकापना कौन करता है। मौर मृग तथा पक्षी मादियों के बने तरह पता जो पाया जाता है उसे कौन करता है ? ऐसा प्रश्न करने पर यही उत्तर मिलता है कि सब में स्वभाव ही है। ऐसे सबको कारण के बिना स्वभाव से ही मानना स्वभाववाद का अर्थ है । ८४ मेव निम्न प्रकार जाननापरसे २४७ जीव, भजी, १ नास्ति x २ आापसे, आस्रव संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष = १४५ काल, ईश्वर, धारमा नियति ७० । मापसे (स्वत:) जीव काल से नहीं। परसे जीव काल से नहीं। इस प्रकार जीव-मजीव वादिक ७ पदार्थ मापसे, परले इसलिये नास्ति ४२ काल के अपेक्षा से नहीं है धापसे, परसे- २४७ पदार्थ - १ 23 " " १४ काल की अपेक्षा नहीं है १४से नहीं है = १४ श्रात्मा की " = १४ नियति को १४ ७० भेद जानना । " #

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