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गुण स्थान
। व्युच्छित्ति
प्राप्त प्र. .. की संख्या
जिन प्रकृतियों की बंध पुच्छित्ति होती है उन प्रकृतियों के नाम
2 मिथ्यात
मिथ्यात्व १, नपुसक वेद , नरकायु १, हुंडक संस्थान १, प्रसंप्राप्त
माटिका , एशिदि ति ४, इसायर १, पासप १, सूक्ष्म १, पर्याप्त १, साधारण १, नरक गति १, नरक गत्यानपूयं १ थे १६ ।
नागन
स्थानगृद्धि १, निद्रा-निद्रा १, प्रचना-प्रचला १, अनन्तानुबन्धी कषाय ४, स्त्रीवेद १, तियंचायु १, दुभंग १, दुःस्वर १, अनादेय १, न्यत्रोध परिमंडल संस्थान १, स्वाति सं० १, कुब्ज सं० १, वामन सं० १, बज्रनाराच संहनन १, नाराच सं० १, अर्धन,राच सं. १। कीलित सं० १, अप्रशस्त विहाचोमति १, तियंच गति १, तिर्मच गत्यानपूर्व्य १, उद्योत १,नीचीत्र १ये २५ ।
यहां किसी प्रकृति की व्युच्छित्ति नहीं होती।
३ मिश्र
प्रप्रत्याख्यान कषाय ४, मनुष्यायु १, वचवृधमनाराच संहनन १, प्रौदारिक भारीर १, प्रौदारिक अंगोपांग १, मनुष्य गति ३. मनुष्य गस्पानुपूज्यं १, ये १० ।
४
असंयत
प्रश्पाख्यान कषाय ।।
५
देश संयत
प्रसात्ता वेदनीय १, अरति-शोक २, अस्थिर १, अशुभ , अया: कीर्ति १६।
६ प्रमत्त
७ अप्रमत्त
देवायु, प्रकृति ही ज्युछिनि होती है, जो अंगी चढ़ने के संमुख नहीं है ऐसे स्वस्थान अप्रमत्त के ही अन्त समय में प्युछित्ति होती है। दूसरे सातिशय अप्रमत्त के बन्ध नहीं होता, इसलिये न्युछित्ति भी नहीं होती।
२
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भाग १
निद्रा १, प्रचला १ ये २ प्रकृतियों की व्युमिति होनी है। इस ग में श्रेणी चढ़ते समय मरण नहीं होता।