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पूर्वोक्त गतियों में, सब नारकी पर्यायों में सब भोगभूमिया पर्यायों में और अच्युत स्वर्गपर्यन्त सब देवों में उत्पन्न होता है । (देखो गो० क० गा० ५४१) ।
३. मनुष्यगति- मनुष्य जीव मरकर कहा- २ उत्पन्न होते हैं ? समाधान - कर्मभूमि के पर्याप्त मनुष्य मरण करके चारों हो गतियों में संज्ञी पंचेन्द्रिय विशेष की तरह सब गतियों में उत्पन्न होता है । उसी तरह अहमिन्द्र भी हो सकता है । तथा विद्ध स्थान मोक्ष में प्राप्त होते हैं ।
अपर्याप्त मनुष्य कमभूमि के लियंचों में उसी तरह तीर्थकरादि पद छोड़ कर सामान्य मनुष्यों में जन्म लेता है
शतार - सहस्रारपर्यंत स्वर्गो वाले देव भी मर कर पूर्वोक्तसज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य तियंचों में उत्पन्न होते हैं । अर्थात् १५ कर्मभूमि में मनुष्य और लवणादधि, फालोदधि, स्वयथुरमण के अपराध द्वीप, स्वयंभूरमण समुद्र इनमें संज्ञी, पर्याप्त जलचर, स्थलचर, नभश्चर, तियं च भी होते हैं ।
३० भोगभूमि के चि और मनुष्य और प्रसंख्यात द्वीप में के जधन्य भोगभूमि के तिर्यच यदि सभ्यसमुद्र दृष्टि हों तो सोधर्म और ईशान्यस्वर्ग में जन्म लेते हैं। और उनका गुणस्थान यदि पहले दूसरे ही भवन त्रिक देवों में जन्म होता है । कुभोग भूमि के मनुष्य भवनत्रिक देवों में जन्म लेते हैं ।
चरम शरीरी मनुष्य मोक्ष जाते हैं ।
आहारक शरीर सहित प्रमत्त गुरणस्थान वाले मरशा करके कल्पवासी देवों में उत्पन्न होते हैं । (देखी गो० क० गा० ५४१-५४२-५४३) ।
४. देवगतिदेव मर कर कहां-कहां उत्पन्न होते हैं। समाधान सब देव मरण करके सामान्य से सजी पंचेन्द्रिय कर्मभूमिया तिच तथा मनुष्य पर्याय में और प्रत्येक वनस्पतिकाय, पृथ्वी काय, जलकाय बादर पर्याप्त जीवों में उत्पन्न होते हैं ।
विशेष भवनत्रिक देव मरकर सोधर्म-ईशाय स्वर्ग के देवों की तरह जन्म लेते हैं। वे तीर्थंकारादि त्रेसठ शलाका पुरुषों में जन्म नहीं लेते, अन्य मनुष्यों में ही जन्म लेते है ।
ईशान्य स्वर्ग पर्यन्त के देव मरकर पूर्वोक्त मनुष्य तियंचों में तथा बादर पर्याप्त, पृथ्वी, जल, प्रत्येक वनस्पति, एकेन्द्रिय पर्याय में उत्पन्न होते हैं ।
सर्वार्थ सिद्धि पयन्त के देव मरकर १५ कर्मभूमि में मनुष्य में ही जन्म लेते हैं। (देखो गो० क० गा० ५४५४३) ।
४६. कौन और किस तरह का मिथ्यादृष्टि देवति में कौन सा देव उत्पन हो सकता है ? सभाधान
(१) भोगभूमि में मिध्यादृष्टि और तापसी ज्यादा से ज्यादा भवनत्रिक देवों में उपन्न होते हैं ।
(२) भरत, ऐरावत, विदेह के मनुष्य और तिच और स्वयंभूरभरण अर्धद्वीप और स्वयंभूरमण समुद्र फालोदधि समुद्र के जलचर, स्थलचर नभश्रसंज्ञी तिथंच पर्याप्त भवमिध्यादृष्टि और उपशमि (शांत परिणामी ) ब्रह्मचयंधारक, वानप्रस्थाश्रमी और एक जटी, शतजटी, महस्रजटी नग्न, कांजीभक्षक, कन्दमूलपत्र पुष्पफल भक्षक, श्रकामनिर्जश करने वाले, एकदंडी, त्रिदंडी श्रौर बालतप करने वाले ये सब अपने अपने विशुद्धता के अनुसार भवतधिक से लेकर अच्युत स्वर्ग तक उत्पन्न होते हैं।
(३) द्रव्वलिंगी जैनमुनि ( मिथ्यादृष्टि ) नवग्रं वैयक तक जन्म लेते हैं । (देखो मो० ० ० ५४८ ) ४७. कौन कौन से फोन कौन से नरक में जा सकते हैं? समाधान - १ले नरक में मिध्यादृष्टि, कर्मभूनिज, छः ही संहनत के धारक, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, सरीसृप (सर्प विशेष होना चाहिये) पक्ष, सप. सिंह, स्त्री माता, मनुष्य यह जीव जाते हैं २ नरक में संज्ञी पंचेन्द्रिय छोड़कर शेष ऊपर के सब जीव जाते हैं ।
पंचेन्द्रिय और सरी रुप छोड़कर
रे नरक में शेष ऊपर के सब जोव जाते हैं।
४थे नरक में
संप्राप्ता पाटिका संहनन छोड़क