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करता हुआ क्षपक श्रेणी चढ़कर वह मोक्ष को ही जाता मनुष्ययायु अथवा तिचायु इन दोगों में से किसी एक है और
को बांधते हैं, परन्तु तेजस्कायिक और वायुकाायक जीव सकल संयम को उत्कृष्टपने से अर्थात् अधिक से तिर्यंचायु का ही बंध करते हैं । अधिक :२ बार ही धारण कर सकता है, पोछे मोक्ष को भोग भमिया चोव (मनष्य और तियच अपनी प्राय प्राप्त होता है । (देखो गो क० गा ६१६)
के ६ महीने बाकी रहने पर देवायु का ही बंध करते हैं। विशेष---'मित्याहाराणुभय' यह गाथा सम्यक्त्व (देखो गो० क० मा० ६३६-६ ०) प्रकरण में प्रा गई है, मिथ्यात्व गुण स्थान में एक जीव
२. सदय और सत्ता स्वरूप के काते हैं-नारकी, की अपेक्षा तीर्थकर प्रकृति १ और आहारकदिवा २ इन
तिर्य च, ननुष्य देव इन जीवों के अपनी अपनी गति की दोनों सहित युगपत् सत्ता) स्थान नहीं है, तीर्थकर सहित या पाहारकद्विक सहित ही सत्ता होती है। परन्तु नाना
एक गायु का तो उदय ही होता है । जीव की अपेक्षा दोनों का यहां सत्व पाया जाता है, परभव की प्रायु का भी बंध हो जाये तो उनके क्योंकि जिनके तीर्थकर और ग्राहारकाद्विक इन दोनों को।
कताथकर भार ग्राहारकादिक इन दोनो क्रमो उदय रूप यायु राहिन दो पापु की एक बध्यमान और की सत्ता युगपयत् रहती है उसके ये मिथ्यात्व गुण स्थान
एक भुज्यमान) सत्ता होती है और जो परभव को प्राय नहीं होता, सासादन गुण स्थान में नाना जीवों की अपेक्षा का गंध न हो तो एक ही उदयागत भुज्यमान गायु की से भी तीर्थंकर और पाहारकतिक सहित सस्व स्थान नहीं
सत्ता रहती है, ऐसा नियम में जानना । देखो गो० क. नहीं है कारण जिस जीन में तीर्थकर या प्राहारकद्विक इनकी सत्ता हो तो उस जीब के मिथ्यात्व रहित अनंतानुबंधी का उदय नहीं होगा, मित्र गुण स्थान में तीर्थंकर
३.पायुबंध के पाठ प्रपत्रण विभाग प.ल-एक प्रकृति और आहारकाद्वक इन प्रकृलियों की सत्ता
जीव के एक भव में चार प्रायु में से एक ही प्रायु बंध नहीं है।
रूप होती है और सो भी वह योग्य काल में ग्राट बार
ही बंधती है तथा वहां पर भी वह सब जगह पाय का ५६. आयुफर्म के संघ उचय सत्ता को कहते हैं
३रा भाग अवशिष्ठ रहने पर ही बंधती है, अर्थात भूजमान १. ग्रायु के बंध स्वरूप को कहते हैं-देव पोरनार- प्रायू' का तीसरा भाग अवशिष्ट रहने पर ही बंधती है को अपनी भुज्यमान श्रायु के अधिक से अधिक मदीने इसी तरह आगे भी तीसरा भाग शेष रहने पर पाठ
बार मायुबंध हो सकता है । बोष रहने पर मनुष्यायु अथवा तिर्यंचायु का ही बंध करने हैं।
सूचना-भुज्यमान प्रायु का तीसरा भाग बाका रहे
तो बह काल पहली बार आयुर्वध के लिये योग्य होती है (अ) सातवी पृथ्वी के नार की तिर्यच आयु का ही
___ यदि उस समय आयुध न हो तो पागे के दूसरे विभाग बंघ करते हैं, कर्म भूमिया मनुष्य और तियंच अपनी में हो सकती है इसी तरह आयुर्वध के अपकर्षण काल भुज्यमाब प्रायु के तीसरे भाग के शेष रहने पर (अबसर) याला बार पा सकते हैं। (दखो गो० क० गाः चारों धायुप्रों में से योग्यतानुसार किसा भी एक को ६४२) बांधता है।
४. पूर्व कथित पाठ अपकर्षणों (विभागों में) पहली (प्रा एकेन्द्रिय और विकलत्रय जीव ऊपर के समान बार के बाद प्रागे के द्वितीयादि अपकर्षरण काल में जो