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गुण स्थान
। ५६३ ) ४.. पुरण स्थानों को अपेक्षा से संयम बताते हैं१ से ४ गुण स्थानों में -एक प्रसंगम जानना । ५ देशसंयत
-एक संयमासंयम जानना । ६ प्रमत्त
-सामायिक. छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धिये ३ संयम जाना। ७ अप्रमत्त , -
" ये३ संयम जानना। अपूर्वकरण . - ,
ये २ संयम जानना । ६ अनिवृत्तिकरण, १० सूक्ष्म सांपराय, १ सूक्ष्म सांपराय सयम जानना 1 ११ से १४ तक , - १ पथाख्यात संयम जानना । (देखो गोल क. गा० ५..) ४४. सामान्य से गुरण स्थानों में सम्भवती लेश्यामों को कहते है
लेश्यामों के नाम भी सख्या-- १-२-३-४ गुण. में कृष्ण , नील, कापोत, पीत, पद्म, शुक्स ये ६ हरेक में जानना ५-६-७ " -पीत, पदम, शुक्ल पे ३ लेश्या जानना। ८ से १३ तक " --एक शुक्ल लेश्या जानना । १४, " -(०) कोई लेश्या नहीं होते (देखो गो० क० गा ५०३) ११) तथ्य लेश्या-वर्णनामा नामकर्म के उदय से शरीर का जो वर्ण रहता है उसे इन्य लेश्या कहते हैं। इस या मार्गणा मे द्रव्य लेश्या का वर्णन नहीं है। (२) भाव लेश्या-मोहनीय कर्म के उदय से, उपशम से, क्षय से या क्षयोपशम से जीवों में जो चंचलता होता उसी को भाव लेश्या कहते हैं। (३) कोन सा नरक में कौन सा भाव लेश्या रहता है यह बताते हैं --
रले नरक के पहले इन्द्र कबील में कापोत लेश्या का जघन्य अंश रहता है३रे , विचरम
, उत्कृष्ट अंश , ३रे , अंतिम , नील लेश्या का जघन्य अंश , ५वे , द्विचरम , उत्कृष्ट अंश :
वें , अंतिम , कृष्ण , जघन्य अंश , ७३ , अवधिस्थान ,, , , उत्कृष्ट अंश , जघन्य और उत्कृष्ट इन दोनों के बीच में के लेश्या का ग्रंश मध्यम जानना । (देखो गो. क. गा० ५४६ )