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कर्म प्रकृतियां
१. ज्ञानवरण के
मति ज्ञानावरण
"
अस अवधि
मनः पर्यय केवल
निद्रा
प्रचला
"
२. दर्शनावरण के चक्षु दर्शन
JP
चक्षु
अवधि
केवल
स्थान गृद्धि निद्रा निद्रा
प्रचलाप्रचला
ग
३. वेदनीय के सातावेदनीय असाता
माया १
लोभ १
४ मोहनीय के मिथ्यात्व १ धनतानुबंधी के कोष १
मान १
प्रत्याख्यान के क्रोध १
मान १
माया १ लोभ १
( ७१४ )
२५- मूलोसर प्रकृतियों की स्थिति बंध को बतलाते हैं
'देखो गो० क० गा० १२७ से १३३ और १३६ से १४ को० नं० ४१ )
उत्कृष्टस्थिति बंध
३० कोडाफोडी १ पं
सागर
32
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1
"
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11
| १५ को० को० सा ३० को० को० सा
७० को० को० सा
४० को० को० सा०
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け
13
मवश्य स्थिति बंध
+)
13
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ह
"
१२ मुहूर्त
४० को० को ० सा० दो महीने १ महीना
"
१५ दिन
१ अंतर्मुहूर्त
दो महिने एक महीना १५ दिन
१ अंतर्मुहूर्त
कर्म प्रकृतियां
प्रत्याख्यान के । क्रोध १
मान १
माया १ लोभ १
संचलन के
मान १
माया १
लोभ १. नोकषाय के
हास्य १
रति १
अरति
शौक १
भय १
१ अंतर्मुहूर्त पुरुष वेद १
जुगुप्सा १
नपुंसक वेद १ स्त्री वेद १
५- प्रायुर्म के
नरका १ तिचा १
ममुष्यायु १ देवा १
६. नाम कर्म के नरकगति
तियंचगति मनुष्यगति
चकच्छ स्थिति बंध
i४० को को० सा० २ महीने
"
१ महीना
१५ दिन
१ मुं
#1
४० को० को० सा०२ महीने
21
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१० को० को० सा०
13
२० को० को सा०
11
11
37
|१४ को फो० सा० [१०] को० को ० खा०
३३ सागर
| ३ पस्य
३ पल्य
३३ स गर
जघन्य स्थिति बंध
२० को० को० सा०|
+
| १२ को ० क० सा० |
१ महीना १५ दिन १ अंतर्मुहूर्त
८ वर्ष
१ पंतमुहूर्त
१० हजार वर्ष
१
11
१० हजार वर्ष
८ मूहु
कालान