Book Title: Chautis Sthan Darshan
Author(s): Aadisagarmuni
Publisher: Ulfatrayji Jain Haryana

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Page 759
________________ ( ७२६ ) (०६) ग्राहाक सरीर नाम कर्म (६१) तेजस शरीर नाम ६. (६२: कारण शरीर नाम कर्म कहते हैं । ४ बंधन नामकर्म शरीर नामकम के उदय से जो वारूप पुद्गल के स्वन्ध इस जीव ने ग्रहण के किये थे उन पुगन्धों के प्रदेशों (हिस्सों का जिस कर्म के उदय से आपस में सम्बन्ध हो उसे बन्धन नामकर्म कहते है । उसके पांच भेद है । (६) औवारिक शरीर बन्धन (६४) क्रियिक हारक शरीर अम्मन (६६ नेकप वशरीर कघन शरीर बन्धन और (६५) कार्याल ५. संघात नाम मं- जिसके उदय से मदारिक श्रादि शरीरों के परमाणु आपस में मिलकर छिद्र रहित बन्धन को प्राप्त होकर एक रूप हो जाय उसे संघात नामकर्म करते हैं। यह (६८ भौवारिक संघात (६६) वैदिक संघात (७० धातार संघात (७१) तेजस संभत (७२) कार्माण शरीर संघात द्वरा तरह पांच प्रकार है। ६. सग्धान नामकर्म जिस कम के उदय ने शारीरिक आकार (दाल) बने उसे संस्थान नामकर्म कहते हैं । उसके ६ भेद हैं ( ७३ समय र संस्थान-जिसके उदय से शरीर का आसार ऊपर नीचे तथा बीच में समान हो अर्थात् जिसके अंगोपाङ्गों की लम्बाई, चौड़ाई सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार ठीक-ठीक बनी हो वह समचतुरस्र संस्थान नामकर्म है। (७४) ग्रोषपरिमण्डल संस्थान -जिसके उदय से शरीर का श्राकर न्यग्रोध के ( बढ़ के ) वृक्ष सरीखा नाभि के ऊपर मोटा और नाभि के नीचे पतला हो वह न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान नामकर्म है । शरीर कुबड़ा हो उसे कुब्जक संस्थान नामकर्म कहते हैं । (७७ बामन संस्थान - जिस कर्म के उदय से बौना शरीर हो वह यमन संस्थान नामकर्म है । (७८ डक संस्थान - जिन कर्म के उदय से शरीर के प्रयोग किसी खास शक्ल के न हों और भयानक बुरे प्रकार के बनें उसे झुंडक मुस्थान नामक कहते है । ७ श्रगोपान नामक - जिसके उदय से आंग का भेद हो वह सांगोपांग नामकर्म है। उसके तीन भेद (७९) धौवारिक प्रगोश ( ८० ) क्रियिक श्रीगोपा] (८१) ब्राहारक भोगोपाय | ८. संहनन न मरुमं जिसके उदय से हाड़ों के बन्धन में विशेषता हो उसे संहनन नामकर्म कहते हैं। वह छ प्रकार का है - (२) बच्चबुभनाराज संहनन जिस कर्म के उदय से वृषभ ( वेऊन ) नाराच कीला) सहजन (हाड़ों का समूह ) बज्र के समान हो, अर्थात् इन तीनों का किसी शस्त्र से छेदन भेदन न हो सके उसे बज्रनुभनाराच संहनन नामकर्म कहते हैं । ऐसा शरीर हो जिसके बच्च के हाड और बज्र की कोली (०३) बज्रनाराच संहनन जिस कर्म के उदय से हो परन्तु बेत बच्च के न हों वह यञ्चनाराच सहनन नामकर्म है । - (८४) नारश्च संहनन जिस कर्म के उदय से शरीर में बच्चरहित (साधारण) बैठन और कीलीसहित हाड हों उसे नाराच संहनन कहते हैं । (८५) नाराच संहनन जिस कर्म के उदय से हाड़ों को संधियां प्राधी कीलित हों वह अर्धनाराच संहनन है । (७५) स्वाति संस्थान -जिसके उदय से स्वाति नक्षत्र के अथवा सर्प की बांमी के समान शरीर का आकार हो, अर्थात् ऊपर से पतला और नाभि से नीचे मोटा हो उसे स्वर्गत संस्थान कहते हैं । (७६) व व्जक संस्थान - जिस कर्म के उदय से (१) श्रदारिक यदि शब्दों का अर्थ जीवकांड की योग मार्गणा में देखो । (८६) कीलित संहना किस कर्म के उदय से हाड परस्पर कोलित हो उसे कीलित संहनन नामकर्म कहते हैं ! (८७) प्रसंप्राप्ता सृप टिका संहनन- जिस कर्म के

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