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१श्व १४
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अस्थिर प्रकृति शुभ प्र०१
'वी गरण के ६वां भाग में अशुभ प्र०१
६ गुण सुभग प्र. १
4वां गुण. के वां भाग दुर्भमप्र०१
रे गुण में सुस्वर
| वां गुण.के वां भाग में 'दुःस्वर १
रे गुण में मादेय
। वां गुरग के वा भाग में " अनादेय १
| रे गुरण में " यशः कीति ।
१०वां गुणां में " निर्माण १
८वो गुण० के ६वा भाग में " तीर्थकर प्रकृति १ गोत्रकर्म उच्चगोत्र १
१० गुण. में " नीचगोत्र १
२रे मुरण में अन्तराय कर्म के प्रकृति ५,
। १०वें गुरा इस प्रसकार ५+६+२+५+३+ १०+२+५=१ प्रकृति जानना २७. वय पशि के बाद अन्य ज्युजिशि बिनाको प्रकृतियां हैंप्रकृति
नवय कयुक्चिशि गुण पायु कर्म के देवायु १
४थे गुणः में नामकर्म के देवगति ?
" देवगत्यानुपूर्वी १ " क्रिषिक शरीर " वै० अगोपांग १ पाहारकद्विक २
६वें गुरम में नयशः कीर्ति १
४थे गुग में इस प्रकार +७=८ प्रकृति जानना
बंभ ० गुण ७वें गुरष में
वा गुण के ६वां भाग में जानना
६६ गुग में
२८. स्वय युध्छिसि और बम्म यित्ति जिनके एक साथ (एक ही गुण स्थान में) होता है वे प्रकृतियां
११हैमोहनीय कर्म के २१ प्रकृसिया--
गृरण का नाम मिथ्यात्व १.
१ले गुण अनन्तानुबन्धी-क्रोध-मान-मापा-लोभ ४
रे गुण अप्रत्याख्यान " " ' " Y
ये गुण प्रत्याख्यान
५ गुण संज्वसन कषाय-क्रोध-मान-माया मे ३
गुस्सा हास्य-रति, भय-जुगुप्साये ४
वे गुण. पुरुषवेद १
हमें गुरणः नाम कर्म के १६ प्रकृतियाँप्रासप १, स्थावर १, सूक्ष्म १, अपर्याप्तक १, साधारण १, एकेद्रियादि जाति ४,से प्रकृति
१ले गुण मनुष्यगत्यानृपूर्वी १
४५ गुण. इस प्रकार २१+१०-३१ प्रकृति जानना । (देखी गो० क० ग० ३६६-Ye-४०१)