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चौंतीस स्थान दर्शन
१५ मंजी
1
१६ आहारक
१
मंजी
शाहारक, अनाहारक
० उपयोग ज्ञानोपयोग दर्शनोपयोग ४ ये १ जानना
१२
!
मीनों मनियों में हरेक में १ मंत्री जानना
को० नं०१७-१८ १६ देखी |
(१) नियंच गति में १-१ के मंग
|
को० नं० १७ देखी (२) मनुष्य मति में
१-१-१ के मंत्र की नं १ देखो ( ) देवगति में
1
१ ग्राहक जानना को० नं० १६ देखी
(१) निर्वच गति में
५-६६ ६-६ के भंग १७ व
(5) मनुष्य गति में
के भंग
को० नं० १८ दे (२) देवगति में
५-६-६ के भंग
को० नं०] १६ देवी १.
२१ ध्यान
१५. व्युपरत किया नितिनी । (१) नियंव गति में घटाकर (१५)
८-६-१०-११-२-६-१० के. भंग
1
( ५६८ ) कोष्टक नं० ७६
४
कॉ० नं० १७ देवो कोल्नं० १७ देतो (१) मनुष्य गति में
1
१-१-१-१-१ के नंग की नं० १= देखों (२) देवमति में १-२ के म
००१६
1
मारे भंग ५-६-६-३-१७-२-५-६६००१८ देखी
सारे मंग
१ अवस्था
को० नं० १= देखो कोनं १८ देखी
い
|
i
प्रहार अवस्था अवस्था को० ०१३ सो सोनं० ११ देव
१ दे तो
.
१ भंग नं १ देखो
दोनों गर्मियों में हरेक में १ नंशी जानना को० नं० १८१६ देखो
I
1
१ उपयोग
नं० [१] कृवधि ज्ञानमतः | झन घटाकर (१०)
1
(१) मनुष्य गति में ४-६-६-२ के भग को० नं० १६ दे
(४) देवगति में ४-६-६ के भंग को० नं० १६ देखी
उपयोग ००१० देखो
4
१ भग
१ उपयोग
हो० नं० १६ देखी कोनं० १६ देखी
1
पर्याय
धर्म ज्यान ४, ये (१२०
(१) मनुष्य वनि में
८- २०७१ के भंग
७
| दोनों
स्था को० नं० १८ देखो
१ भंग | १ न
१५
को० नं० १७ देखी कोन० १तंत्र्यान ४ शेध्यान ४.
शुक्ल लेश्या में
१ अवस्था 1 दो अवस्था को० नं० १० पोको० नं०१२
गारे भग
००१
१ भग को० १६ देखो
१ अवस्था को० नं० १८ दे
भंग
८
मारे ग को० नं० १८ देखो
१ योग
फो०२ १८ दे I
१ उपयोग की००३ दे
१ ध्यान
१ ध्यान को० नं० १८ देख