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चौंतीस स्थान दर्शन
{ ५८२ । कटक नं०८१
भव्य में
त्रो
१८ सभी संबी असंञी । (१) नरक-देवमति में
की नं०१६-१६ को नं०१६- नरक-दंवगति में ' को ११ को नं०१६हरेक में
१६ पो । हरेक में
देखा १ संजी जानना
| · मंत्री जानन। को.नं. १६-१६ देखो ।
का नं०१६-१६ देखो। । (२) तिर्यंच गति में १ भंग । १ अवस्था । (२) तिर्वच गनि में
१ भंग १ अवस्था १-१-१... के भंग
की नं. १७ देखी को नं०१०। १-१-१-११-१ मो भंग को० नं १३ देसी को नं०१७ को न: १७ देखो देखो | को-नं०१७ देनो
। देखो (३) मनुप्य गति में
. 13मगषा गति १-१ के भंग
|1-0-2 के भंग को नं.१- देखो
| कोलन १८ देखो १६ याहाक
स्था ! १यवस्था आहारकः, अनाहारक (१) नरक-देवगति में कान -१.! कोनं. १६-(१) नर-दवनि में को नं. १६.११ . न०१६हरेक में | देवो
१६ देतो १ याहारत जानमा
१-१ के भग-कोर नं. को. नं०१६-११ देखा ।
१६.६ देखो | (२} निर्यच नान में
(२) निर्वन गनि में
अवस्था १-१ के भंग-को० नं० कि० नं १७६खो। को० नं०१७ | १-१-१-१ के अंगोn T बो | फो.नं०१७
दखो
को.नं०१७देखो । (३) मनुष्य गति में
| . प्रवस्या । (३१ मनुष्य गति में गर भंग १ अवस्था १-१-११ के भन को न. १. देखो को न०१८ | १-१-२-१-१-१-१ के भग की नं.- देखो | को० नं०१८ को० नं0 दरो
देखो को १८ देखो ।
देखो २० उपयोग
भंग १उपयोग १०१ भंग
१ उपयोग ज्ञानोपयोग 5 (१। न के गति मे
कोन१६ देखो | को० नं १६ कृअवधि शान, मन: दर्शनोपयोग ४ ५.६-६ के मंग
देखो पर्यय जान ये २ घटाकर ये १२ जानना
को. नं०१६ दग्यो (२) निरंच गति में
१ उपयोग नरक पनि मे को००१८ देवा को नं. १६ ३-४-५-६-५-६-६ के भंग को.नं. १७ देखो | कोनं १७ ४-६ के भंग-को० नं. को न०१७ दबो
१६ दंनो
१ भंग
दो