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चौंतीस स्थान दर्शन
(दोहा) प्रसिद्ध भगवान को, वन्दो मन-वच-काय । चौतीस स्थान दर्शन, रचना कहों बनाय ॥१॥
(छन्द-सर्वया इकतीसा)
जघाव नरक-देव दश हजार मानिये, तिर्यक् नर जघन्य काल अन्त महतं ध्याइये। मध्यम में अनेक भेद जिनवाणी गाइये,
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नारकी-मनुष-देव-तिथंच अन्तर जानिये ।। जघन्य कहो एक ही अन्तमहतं मानिने अन्तर उत्कृष्ट के अनन्त भेद जानिये ।
गुण चौदा, जीव चौदा, प्रजा षट, प्रारण दस,
संज्ञा चार, गति चार, छटवा स्थान जानिये ।
जाति लाख चउरासी प्राधपाटि दो सौ लाख,
इन्द्रिय पांच, कायषट, योग पन्द्रह, वेद तीन,
चौपाय, ज्ञान पा, संयम सात मानिये ।।२।।
हग चार, लेश्या षट, भव्य दोय, सग्य कछे, १८ १९ २० सनी दोम, आहार दो, उपयोप बारा, मानिये ।
कोटिकुल संसार त्याग सिद्ध पद पाइये ।।६।।
(छन्द-सवैया तेईसा) पहले जोव समास सकल है,
शेषन में बस एक ही जान । पर्याप्ति चौदम लग पट ही,
प्राण बार में लग दस जान ॥७ तेरम बच-तन-श्वास-मायु चतु,
चौदम एक प्रायु पहिचान । संशा कहिये षट लग चारो,
सप्त अष्ट त्रय हार न स्थान | नव में मैथुन परिग्रह धोनों,
दस में परिग्रह अगे हान । संज्ञा पर संसार खड़ा है,
इनके गिरते ही पायत निर्वाण ॥
ध्यान सोला, प्रासय सत्तायन, भाव वेपन,
अवगाहना योजन हजार, बताइये ।।३।।
२६ बंध एक शत बीस, उदय एक शत बाईस,
सख शत एक अड़तालीस प्रभु गुण गाइये ।
संख्या है अनन्त, क्षेत्र-फर्श भी है सर्वलोक, ३१ काल परिवर्तन प्रसंख्यास पूदगल जानिये ॥४॥
छन्द-चौपाई पहले ते चतुलग गति चार,
पंचम में नर पशु विचार :