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चौंतीस स्थान दर्शन
( ५६७ ) कोष्टक नं० ८३
भव्य अभव्य रहित में (सिद्ध गति में)
*०/ स्थान / सामान्य
पर्याप्त
। पालाप
अपर्याप्त
नाना जाबों की अपेक्षा
एक जीव की अपेक्षा । एक जीव की अपेक्षा नाना समय में
एक समय में
मूचनाअपर्याप्त नहीं होती।
१गुण स्थान २ जीव समास ३ पर्याप्ति ४प्राण ५ संज्ञा ६ गति ७ इन्द्रिय जाति ८ काय योग
११ कवाय १२ ज्ञान १३ मंयम १४ दर्शन १५ लेवा १६ भव्यत्व १७सम्यक्रव १८ संजी १९ माहारक २० उपयोग २१ ध्यान २२पास्तव २३ भाव
अतीत गुरण म्धान
जीव समास , पर्याप्ति " प्राण
। संज्ञा गनि रहिन (सिद्ध गति) अतीत इन्द्रिय प्रकाय प्रयोग अगगत वेद प्रकपाय १व-बल ज्ञान अमयम-संयमानंयम-संयम ३ से रहित १ केवल दर्शन अलश्या अनुभव (न भय्य न प्रभव्य) १ क्षायिक सम्यक्त्व अनभय (न मजी न मनाहा.) मनुभय (न आहार क न अभव्य) २ जानोपयोग-दर्शनोपयोग (दोनों युगपद) अतीन व्यान मानव रहित मायिक जान-दर्शन-वीर्य-सुख (सम्यक्त्व) जीवत्व ये ५ भाव