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चौंतीस स्थान दर्शन
( ३५३ । कोष्टक नं०५१
अनन्तानुबन्धी ४ कषायों में
(२ तिथंच गति में
१ जाति , जाति (3) तिच गति में १जाति जाति ५-१-१ के भंग को नं०१७ देखो कोनं० १७ देखो| ५-१ के भंग फो० नं. १७ देखो कोनं०१७ देखो को.नं. १७ देखो
को म०१७ देखो ८ काद
१काय को० नं.१देशो |१) भरक-मनुष्य-देवगति में को.नं १६-१८-कोन १६-१८- (१) नरक--मनुष्य-देन पर्याप्तवत पर्याप्तवन हरेक में
१६ देखो गति में हरेक में १ यकाय जानना
पसकाय जानना को नं०१७-१८-१६ देखो
को०१६-१८१६ देखो (२) तिर्यच गति में
(२) तिथंच गति में . १काय
काय २१-१के मंग को २०१७ देखो कोनं०१७ देखो -४-१ के भंग को नं १७ देखो कोनं०१७ देखो को० नं०१७ देखो
१ योग
है योग १३ १मंग १ योग
१ मंग प्रा० मिथ काययोग मो० मिथकाययोग, मपने अपने स्थान के प्रपने अपने स्थान गत मिश्वकाययोग १, अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान १, याहारक काययोग चै० मिश्र काययोग , | सारे अंग जानना | के भंगों में से 4 नियकाययोग १, भग जानना के अंगों में से कोई १, २ घटाकर (१३) कोर्माण कारयोग
कोई योग काग कापयोग ।
| १ योग ये ३ टाकर (१०)
ये ३ भंग जानना (१) नाक-मनुष्य-देवर्गात में को.नं. १६-१
(१) नरक-तियंच-मनाया-कोनं०१६ से १६ कोलम.१६ से | ११ देखो
| देवगति में
देखो १६ देखो का भंग
१-२के मंग जानना का नं.१६-१-१६
। कोनं. १६ मे १६ देखो, (२) तिपंच गति में
को० नं०१७ देखो ९-२-१- के भंग कॉ० नं०१७ देखी
मंग पेद ।
भंग १ वेद को० नं. १ देखो | (१) नरक गति में को० नं. १६ देखो कोनं० १६ देखो (१) नरक पनि को० न०१६ देखो को नं. १६ देखो १नपूसक वेद
१ नपुंसक वेद कोनं०११ देखो
को० नं। १६ देवो