________________
चौतास स्थान दर्शन
कोष्टक नं० ५.
अनन्तानुबंधी ४ कषायों में
देखा
भंग में मे प्रनन्दानुबंधी कपाव जिसका विचार
पशवन् अनम्नानुबनी करी उमको छोड़कर शेष
वसाय ३ घटाकर ३६ ३ क्रमाय घटाकर ४६-४१।
भंग जानना केभंग जानना
(२) निगन गन में मारे भंग १ मंग (२) निर्यच गनि में
सारे मंग भं ग ३४-३५-२६-७-४०.४? को००१७ देखा | को. नं०१७ ३३.२५-२६-23-10-४८ को नं०१७ देखो को० न०१७ -२६-३०-३१-१२-१५
देखो ३-४७-४० के भग-को।
'३६-४०-५ के भंगनं.१० के ३६-३८-३६
को नं०१७ के ३५४०-४१-५.१-४६-५०-४५
२८-२९-३०-४३.४६-१२के हरेक भंग में से ऊपर के समान अनन्तानुबंधी
३% के हरेक भंग में गे ! वापाय ३ पाकर ३-५
पर्याप्तवत् अनन्नानुबंधी -३६-३.४७-४६-४३-४७
कषाय : पाकर ३४१२ के भंग जानना
३५-३६-३७-४०-४१-8(3) मनुष्य गति में
मारे भंग १ भग
३०-३१-३२-३५-३५-४०४८-४३-४७-४२ के भंग- कोल नं०१८ देखो को० नं० १८ ३५के मंग जानना को नं०१८के -४६.
दबी (३ मध्य गति में सारे भंग १ मंग ५०-४५ के हरेक मंग
४१-२६-४०-२५ के भंग को० नं. १८ देखो को.नं०१८ में डे ऊपर के ममान
को नं. १० के ४४
देखो अनन्तानुबंधी कयाय ।
-४३-३८ के हरेक घटाकर ४६-४३-४७-४२
मंग में मे पर्याप्सवत् के भग जानना
अनंतानुबंधी कपाय ३ (४) देवगनि में
सारे मंग . मंग | पटाकर ४१-३६-४०४७-४२-४६-४१ के मंग को नं० १९ देखो' को.नं.१६ ३५ के भंग जानना को.नं. १६ के ५०-४५
। (४) देव गति में
मंग ४६-४४ के हरेक मंग में
४०-३५-३६-३४ के मंगको .नं. १६ देखो | को.नं. १६ से ऊपर के समान अनन्ता
को० नं०१६ के ४३
देसी बंधी कषाय ३ घटाकर
३८-४२-३७ के हरेक ४७-४२-२६-४१ के भंग
भंग में से पर्याप्तवत् ब्बानना
अनन्तानुबंधी कषाय ३ ।
मारे भंग